पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/११६

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सिंह-चाहिनी (१) सन्ध्या का समय था। एक वृक्ष के झुर झुट में दो व्यक्ति धीरे धीरे बातें कर रहे थे। एक युवक था। दूसरी युवती । युवक ने कहा- "श्रोह जीवन का मूल्य कितना है, चलो भाग चलें, मैं इस खद्दर को भस्म किये देता हूँ।" "और देश प्रेम ?' "भाड़ में जाय।" "वह वीर भाव ?" "नष्ट हो" "वे बड़े बड़े व्याख्यान ?" "बकबाद थी" "तुम्हीं तो वे थे ?" "जब था तब था" 1 एक सत्य घटना पर "