पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१२३

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( ११४ ) का आनन्द त्योहार की तरह हमने मनाया है । हम तुन्हें बहुत ही सम्मान करते हैं । समझते हो ? खेद है, तुम नहीं हँसते हो, तुम्हारी मूछ का एक बाल भी नहीं मुस्कराता ? आखिर बात क्या है ? हाय तुमने हमारी ओर से मुंह फेर लिया !!! आखिर हम कर ही क्या सकते थे! तुम्हारे जाने के बाद हम बिना. रस्सी के बैल हो गये; हमने तैरना सीखा था ? तिनका गवा कर हम डूब गये ! इसमें अचरज क्या है ? तुम क्या समझते हो ? क्या घर भर में सभी को वीर होना चाहिये ना, यह बात हम तुम्हारी नहीं मानेंगे। हम ने तुम्हें वीर बना दिया, तुम्हें मैदान में धकेल दिया, तुम्हारी छाती घायल होते देख कर भी हम खुल कर न रोये, तुम्हारे पीछे किसी न किसी तरह जीते रहे, यह थोड़ा है? इतना भी कितने कर कव तुम्हारे पीछे वे लोग आये थे, कहने लगे, कहाँ है प्रतापी सम्प्रदाय ! उनका पान के नाम पर सिर काटा जायगा, हम पहले तो डर कर घरों में छिप गये, सन्न हो गये, कुछ कहते बना ही नहीं । किसकी सलाह लेते ? किस की आद लेते ? कैसे हिम्मत रखते ? तुम दो घर थे ही नहीं, पर अन्त में हमें निकलना पड़ा.