पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१३

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आया कुछ माता को दिये, कुछ पिता को, बाकी आप खाये। तब तुम हिले न डुले, न यह कहा कि ये मेरे हैं न यह कहा कि ये मेरे परिश्रम के हैं केवल उत्फुल्ल नयनों से खड़े मुस्कराते, हमारे उस सुख और आनन्द को देखते रहे। तुम हमारे कौन हो ? प्यारे स्वदेश ! जब मैं छोटा था तब मैं देखा करता था कि तुम्हारी गोद बहुत छोटी है । पर ज्यों २ मैं बढ़ता जाता हूँ तुम्हारी गोद फैलती जाती हैं । जिस से मुझे खेलने खाने में तङ्गी न हो । मैं जन्म भर बहूगा पर तुम भी बढ़ते रहोगे । न जाने तुम कितने बड़े हो। अँधेरी रात में, कड़कड़ाती बिजली में, बरसते मेंह में, झिलमिलाती दोपहरी में, प्लेग में, हैजे में, महामारी में, अकाल में सदा हम यह कह कर ढारम बँधा लेते हैं डर क्या है ? तुम्हारी गोद ही में हैं। और आमोद प्रमोद की बेला में, स्वस्थ्य की तरङ्ग में, सुख की उमङ्ग में कहते हैं, "हम सब तुम्हारी गोद में आँखों के सामने खेल रहे हैं। अच्छा बताओ तो क्या तुम हमारे दुख सुख में हँसते रोते भी हो?" तुम बड़े ही अच्छे हो। सुनते हैं बूढ़े होकर लोग निर्मोही हो जाते हैं पर तुम ज्यों २ बड़े होते जाते हो प्रेम बढ़ाते ही