पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४

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( ५ ) जाते हो। तुम्हारा हो या पराया। जब कोई बालक ज्येष्ठ की दुपहरी में खेत पर कड़ी मेहनत करता है तो तुम पङ्खा ले कर खड़े हो जाते हो। वह जब घोर ताप से व्याकुल हो उठता है वो अमृत की बूद टपकाते हो ! पर झूठ न कहेंगे, कभी २ बच- पन की तरङ्ग तुम्हें भी याद आ जाती है, खिलवाड़ करने लगते हो । कभी ऐसी हवा चलाते हो, कि किसी की झोंपड़ी उद्द जाती है, किसी का कपड़ा। और सब तो ठीक है पर यह अधम हमें नहीं भाता है। क्योंकि हम गरीब आदमी हैं। इतने दिन से तो तुम्हें जानते ही न थे। अब जाना है। आजकल तुम कैसे हो गये हो ? यह तो कहो ? तुम पड़े क्यों हो ? उठते क्यों नहीं ? क्या बढ़े होने के कारण ? पर बूढ़े क्या श्राज से हो ? मुद्दत से हो । तुम्हारे बूढे २ बेटों ने तो कुहराम मचा दिया था। तब ? तुम कभी २ कराहने भी लगते हो। क्या घाव लगे हैं ? पर तुम्हारे अबोध बालक भी घाव खाकर हँसते रहे हैं तुम्हारी देह सूख गयी है। कपड़े फट गये हैं। क्या तुम दरिद्री हो गये हो या रोगी ? तुम इतने दीन क्यों हो? मेरे सर्वस्व स्वदेश ! ऐं ! तुम रोते भी हो ? इस प्रयाग की पुण्य भूमि पर तुम्हारे आँसुओं का इतना जमघट ! यह तो देखा नहीं जाता। क्या कहा ? 'पूर्व स्मृति' सर्प की तरह डसती है, विचळू की