पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १३१ ) तुम्हारे वे दोस्त कहाँ हैं जो तुम्हारे साथ रहते हैं, अजी यही गोरे २ बाबू असल बात यह है कि मैं तुम्हारे उन दोस्त का सहपाठी हूँ । वे और मैं लाहौर में डी० ए० वी० कालेज में एक साथ पढ़े हैं । मैं दिल्ली आया था, सोचा मिलता चलू । हरसरन को विश्वास नहीं हुआ। उसने अन्य मनस्क होकर कहा, "मुझे कुछ भी मालूम नहीं वे कहाँ हैं।" "यह तो बड़े ताज्जुब की बात है, क्या उनके जल्दी लौटने की उम्मीद भी नहीं है?" "नहीं।" इतना कह कर हरसरनदास उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, "मुझे अब काम पर जाना है।" "आगुन्तुक ने सर्प के समान उसे घूर कर कहा-"तुम्हारे दोस्त किस कोठरी में रहते हैं ? उसे मेरे लिये खोल दो तो मैं उनके आने तक उनकी प्रतीक्षा में ठहर जाऊँ ।" "मेरे पास चाबी नहीं है। "मगर उनकी कोठरी कौन सी है “यहाँ उनकी कोई कोठरी नहीं है।" " यहीं तो रहते हैं। "यहाँ वे नहीं रहते।"