पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१५९

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( १५० ) लिये । अब वह दीवार के पास जाकर टिक टिक टिक शब्द करने लगा। पर उत्तर नहीं मिला। इसके बाद वह दीवार पर मुख रख कर जोर २ से चिल्लाने और दीवार पर घूसे मारने लगा। वार्डर और जेल अधिकारियों के बहुत चेष्टा करने पर भी उसके भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। दिन समाप्त हुआ और रात्रि आई । वह उसी भाँति दीवार में धू से मारत और चिल्लाता रहा । वह बारम्बार ३० नम्बर को गालि देता था। रात ज्यों २ ढलने लगी, वह शिथिल होता गया। अन्त में वह बेहोश होकर गिर पड़ा। वह इस बार खूब सोया। धूप चढ़ गई। दोपहर हो गया। हरसरन उठ कर बैठ गया। कुछ देर वह सोचता रहा । इस समय वह बहुत सौम्य स्थिर और गम्भीर था। उसने एक बार सापेक्ष दृष्टि से चारों तरफ़ देखा । फिर वह बड़ी देर तक उस दीवार की तरफ देखता रहा। एक बार वह उठ कर दीवार की ओर चला भी। पर बीच ही से लौट आया। इस बार उसने वार्डर को पुकार कर कहा, "अभी इसी वक्त बड़े साहब के पास मुझे ले चलो मैं मुखबिर होगा। ७ जेल में हलचल मच गई। फोन पर फोन होने लगे। अधिः : कारी बर्दियाँ कसने लगे। बार्डर और सिपाही चुस्ती से नाकों