पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १५२ ) "क्षमा, तुम्हें क्षमा, कर दिया जायगा ।" हरसरन के होठों पर हसी आई। उसने कहा-मेरे पास एक सबूत है उससे सब काम सिद्ध हो जायेंगे। मुझे घर ले चलो मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दिखाऊँगा जो कभी किसी ने न देखी होगी।" अधिकारी गण ने परामर्श किया। पुलिस का दल तैयार किया गया सभी उच्चाधिकारी साथ चले। मुहल्लों में सन्नाटा छा गया। लोग भीत चकित दृष्टि से इस प्रवल दल को देखने लगे। घर में ताला लगा था। उसे तोड़ डाला गया । घर के भीतर जाकर हरसरन पागल की भाँति जल्दी २ घर में घूमने लगा। एक बार वह पलँग पर लेट कर हँसने लगा। दूसरी बार उसने आल्मारी की दराज़ खोल कर उसमें से एक बढ़िया कोट निकाल कर पहन लिया पर तत्काल ही उसे फेंक दिया। अधिकारी सतर्क होकर उसकी चेष्टा देख रहे थे । पर किसी ने भी उसकी चेष्टा में कोई बाधा नहीं दी । वह इधर उधर घूम २ कर हँसता, कभी बड़ बड़ाता और कभी इधर की चीजें उधर फैकता रहा । इसके बाद वह अपनी पत्नी और पुत्र की तश्वीर के सामने जा खड़ा हुआ। इस बार वह फूट फूट कर रोने लगा। उसने तस्वीर को छाती से लगा लिया, वह बहुत रोया।