पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१७२

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( १६३ ) सहित स्वयंसेवक दल बाहर 'इन्कलाब जिंदाबाद के नारे बुलंद करता रहा। थानेदार साहब बैठे जरूरी कागजात देख रहे थे। डिक्टेटर साहब और लीडर साहवान को इस शान से आते देख उन्होंने बड़े तपाक से उठकर उनसे हाथ मिलाया कुर्सियाँ मंगाई । बैंठने पर टर्र महाशय ने मुस्किराकर कहा मैंने खुद ही आना सुनासिब समझा !" दारोगाजी मिलनसार थे। बोले- बड़ी मिहरबानी की इसके बाद उन्होंने एक सिपाही को पान लाने का हुक्म दिया कुछ देर दोनों पार्टियाँ चुप रहीं। पानखाने के बाद दारोगाजी ने कहा-“कहिए, मैं आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ।" "हमें बहुत खुशी है कि आप इतने खुशअखलाक हैं । श्राखिर तो हमारे भाई ही हैं । श्राप अपनी ड्य टी पूरे तौर पर श्रदा करते हैं, इसका हमें जरा भी मलाल नहीं ।” दारोगाजी ने चिन्ता का भाव मुख पर लाकर कहा--"हमें श्राप साहबान के भाई कहलाने की इज्जत तो नहीं मिल सकती, अलबत्ता आप हमें खिदमतगार कह सकते हैं। अमन श्रामान कायम रखने के लिए हमारी इतनी ही जरुरत आपको है जितनी सरकार को "बेशक, बेशक दो तीन लीडरान बोल उठे--"आप