पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१७८

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( १६६ ) उदय किया चाहते हैं। तुम्हारे उस अनिन्ध कुलबधू के चरित्र को-जो हम भारतीयों का आधार है अपना आदर्श बनाना चाहते हैं। उठो भाभी, सामने खड़ी होकर उसीभाँति हंसती रहो उस हंसी के जादू से हमारी कायरता की कालिमा दूर होती है । हमवीर बनते हैं, हम मर्द बनते हैं। जैसे धूप से फल को बचाकर रखा जाता है, उसी भाँति तुम्हें तारों की छाँह और चाँद की परछाई से बचाकर हाथों ही हाथों वे देशविदेश में लिए फिरे ? सो क्या इसीलिये कि तुम .एक दिन अनायास ही इस भाँति सो जाओगी, और फिर करोड़ों करुण क्रन्दन भी तुम्हें जगा न सकेंगे। अरे देखो लोगों, यह अप्रतिम जोड़ी बिछुड़ती हैं। दोनों ही एक साथ बढ़े, पीड़ा के कुण्ड में बद २ अग्निस्नान करते रहे, एक से एक बढ़कर उद्ग्रीव हो कर : अब एक तो जा रहा है और एक आ रहा है इस पार !! अरे ओ तप और त्याग के देवताओं, तुम यह कैसा रहस्यमय खेल खेल रहे हो ? जिसे देखकर मनुष्य का हृदय हाहाकार करता है, परन्तु तुम्हारी मन्द मुस्कान इस थाने और जाने में भी होठों की कोर पर वैसी ही अठखेलियाँ कर रहा है। एस पार ARI