पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१८

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(६ 1 मंजीवन बूटी कहाँ है ? उससे तुमने कितनों का अच्छा किया है, स्वयं क्यों नहीं अच्छे होते ! क्या जीने की साध मिट गयी यह सम्भव है कि इस जीवन संग्राम से तुम विरक्त हो उठे हो। क्योंकि तुम सदा से नदासोन और एकान्तप्रिय रहे हो। सम्पदा से तुम्हें अजीर्ण हो गया था, सुख से अचि हो गयी थी। बाहुल्यता में ऐसा होता ही है। पर हम तुम्हारे सिवा किसे प्यार करें ? किसको गोद में खेलें ? यह सुख, यह गौरव, यह मौज और कहाँ हैं ? यह सुहावने सुनहरे खेत, यह स्वच्छ नीलाकाश, यह बड़े २ हाथियों की पंक्ति. यह मधुर-रसीले आम के निकुंज बन, यह गौरी-गङ्गा,-श्यामा-जमुना, बताओ और कहाँ है ? बताओ और किस देश की मिट्टी में करोड़ों अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ सत्रो की विभूति मिल रही हैं ? श्राओ ! मेरे प्यारे ! मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। अपनी जवानी से भी अधिक प्यार करता हूँ। अपनी बुद्धि, विद्या, धन, पुत्र, स्त्री मब से अधिक प्यार करता हूँ। यह सब तुम पर न्यौछावर हैं। मेरे साथ ये सब भी तुम्हारे हैं। आओ स्वामी!