पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१९

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एक बार मैं साहम करके देखू कि मेरी भुजा में, मस्तक में, श्रात्मा में, कुछ बल है भी या नहीं ? जिससे तुम्हें खड़ा कर सकू। नहीं तो फिर हम तुम दोनों मरेंगे। तुम इसी हताश बुढ़ापे में और मैं ? मैं इसी चाह की जवानी में । it is? Whol a wonderful essay