पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२०

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मा गंगी ! जन्म लेने के बाद जब से होश सम्हाला तभी से मैंने तुम्हें इस तरह सूखा देखा है । पहिले तो मुझे मालूम ही न था कि तुम कभी बहुत ही हरी भरी थीं, पर जब ब्यास, और बाल्मीकि से जान पहचान हुई, रामायण और महाभारत से बात चीत हुई। तब उन की जवानी पता लगा कि तुम सदा से ही ऐसी दुबली पतली. सूखी साखी और मलिन नहीं हो। बाल्मीकि कहते थे और व्यास भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते थे कि तुम्हारी मोती जैसी उज्ज्वल शोमा थी, निखरा हुआ चांदी सा रंग था शंख जैसा गम्भीर स्वर था और हाथी जैसी मदमाती चाल थी। नववधू जैसा प्राणोत्तेजक हास्य था, अमृत जैसा जीवनप्रद तुम्हारा रस था और माता जैसी शान्ति प्रद तुम्हारी थपकियां थीं। भव ताप से तप्त प्राणी माया मोह से घबरा कर काम क्रोध से जर्जर हो कर- यह काव्य एक बार गंगा यात्रा के समय स०१६१६ में लिखा गया था। 1973