पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२८

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ख़ूनी[१]

उसका नाम मत पूछिये। आज दस वर्ष से उस नाम को हृदय से और उस सूरत को आँखों से दूर करने को पागल हुआ फिरता हूँ। पर वह नाम और वह सूरत सदा मेरे साथ है। मैं डरता हूँ, वह निडर है—मैं रोता हूँ—वह हँसता है—मैं मर जाऊँगा—वह अमर है।

मेरी उसकी कभी की जान पहिचान न थी। दिल्ली में हमारी गुप्त सभा थी। सब दल के आदमी आये थे, वह भी आयी था। मेरा उसकी ओर कुछ ध्यान न था। वह मेरे पास ही खड़ी


  1. यह कहानी प्रताप में सन् २३ या २४ में छपी थी, उस समय पं॰ माखनलाल चतुर्वेदी उसका सम्पादन करते थे। उन्होंने लिखा—"ख़ूनी को छाप कर प्रताप निहाल हो गया।"