पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२९

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( २० ) एक कुत्ते के पिल्ले से किलोल कर रहा था। हमारे दल के नायक ने मेरे पास आकर सहज गम्भीर-स्वर में धीरे से कहा "इस युवक को अच्छी तरह पहिचान लो, इससे तुम्हारा काम पड़ेगा। नायक चले गये और मैं युवक की ओर झुका-मैंने समझा शायद नायक हम दोनों को कोई एक काम सुपुर्द करेगा। मैंने उससे हँस कर कहा "कैसा प्यारा जानवर है !” युवक ने कच्चे दूध के समान स्वच्छ आँखें मेरे मुख पर डाल कर कहा "काश ! मैं इसका सहोदर भाई होता !” मैं ठठा कर हँस पड़ा। वह मुस्कुरा कर रह गया । कुछ बातें हुई । उसी दिन वह मेरा मित्र बन गया। दिन पर दिन व्यतीत हुए । अछूते प्यार की धारायें दोनों हृदयों में उमएड कर एक धार हो गयीं। सरल-कपट व्यव- हार पर दोनों मुग्ध हो गये। वह मुझे अपने गाँव में ले गया। किसी तरह न माना । गाँव के एक किनारे स्वच्छ अट्टालिका थी। वह गाँव के जिमीदार का बेटा था। इकलौता बेटा था। हृदय और सूरत का एक सा, उसकी माँ ने दो दिन में ही मुझे बेटा कहना शुरू कर दिया। अपने होश के दिनों में मैंने वहाँ सात दिन माता का स्नेह पाया। फिर चला आया। अब तो बिनाउसके मन न लगता था। दोनों के प्राण दोनों में अटक