पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/४२

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( ३३. ) उन्होंने निकट जाकर कहा-मैं हूँ डा० मेजर R. L. Kapur M. D. "मगर आप जा नहीं सकते, श्राप पास दिखाइये ।” "पास मेरे पास नहीं है । एक रोगिणी मर रही है, मेरा कर्तव्य है कि मैं जाऊँ "वैल, तुम कीड़े के माफक रेंग कर जा सकता है।" "क्या कहा कीड़े के माफक ?" "यस, इस गली में इसी तरह जाना होगा। नीचे भुको । "कदापि नहीं । मैं भी अफ़सर हूँ-और ३५ नं० रेजीमैन्ट का कर्नल मेजर हूँ" "मगर काला आदमी हो।" "इस से क्या ?" "कीड़े के माफक रेंग कर जाओ-तुम हिन्दुस्तानी।" यह कह कर गोरा यम वन की तरह तन कर सन्मुख खड़ा हो गया। डाक्टर ने क्रोध और वेदना से तड़प कर एक बार होठ चबा डाला और फिर वह धैर्य धारण कर धरती पर लेट गये। उनके वस्त्र और शरीर गली कीचड़ में लतपत हो गये। उन्होंने पड़े ही पड़े पुकारा- "लाला धनपत राय ?" धनपत राय ने द्वार खोल कर रोते-रोते कहा ! ओफ़ ! अब भी शायद बच जाय-पर क्या आपको भी उन जालिमों ने