पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३६ ) "यदि ऐसा न होता तो श्राप से उधर जाने की आशा न थी, वह आपको शोभा देने योग्य स्थान भी तो नहीं। आप वे पुरुष हैं जिनके नाम से गवर्नमेंट काँपती रहती थी-आप अब जब उस गोल पिंजरे में बैठ कर बोलते हैं तो ऐसा ज्ञात होता है कि कोई कुशल अभिनेता-अभिनय कर रहा हो।" लाला जी ने विषाद-पूर्ण दृष्टि से कहा- "क्या सचमुच ?” भद्र पुरुष कुछ लज्जित हुये । परन्तु लाला जी ने एक बार आकाश को ताकते हुये कहा- "हाय ! श्रद्धानन्द ! आज तुमने मुझे जीत लिया।" "क्या आपने सुना ?" "रोज सुनता हूँ। "आप क्या इनका मुंहतोड़ उत्तर नहीं देंगे ?" "नहीं". "आप चुपचाप सब सुन लेंगे ?" "हाँ" "पर लोग मर्यादा से दूर हो रहे हैं।" "क्या कहते हैं ?" "कहते हैं आप वतनफरोश हैं।"