पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/५७

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४८ ) मित्र लोग मस्त थे। स्नान किया, हवन किया और झटपट बाजार से दही मिठाई पूरी लाकर उड़ाने लगे। कठ- पुतली की तरह मैं भी चुपचाप खा रहा था। चारों तरफ रंग बिरंगे कुत्ते खड़े दुम हिला रहे थे और जीभ लपलपा रहे थे, दो मित्र हाथ में डंडा ले मुस्तैदी से इनका पहरा लगा रहे थे। इन्हीं कुत्तों के झुन्ड में तीन चार कन्याएँ खड़ी थीं, इनके काले कृश हाथ पैर और करुण मुखाकृति देखी नहीं जाती थी। मेरे मित्र अत्यन्त रुद्र स्वर में कुत्तों के साथ ही उन हत भाग्यां बालिकाओं को भी दुतकार रहे थे। बालिकाओं को लज्जा थी न ग्लानि, वे फटकार खाकर और भी दीन भाव से दाँत निकाल रिरिया रही थीं। मैं चुपचाप किसी तरह अन्न के पास गले से उतार रहा था पर कलेजा मुंह को आरहा था । हाय ! जिस देश की स्त्रियाँ "असूये पश्या" कही गई थीं। उस देश की पवित्र कन्याओं को ये दिन देखने पड़ रहे हैं ? ये तीस करोड़ नाम हिन्दू 'चुल्ल भर जल में डब क्यों नहीं मरते ? मुझ से सो न खाया गया। एक दम छोड़ कर उठ बैठा, दो तीन पूरियाँ कन्याओं के लिये हाथ में लेकर जूठे दोने कुत्तों के आगे डाल दिए । ओहो हो !!! देखो देखो-कुत्तों के झपटते ही तीनों बालिकाएं भी झपट पड़ी और कुत्तों के मुह