पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/७५

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अँग्रेज़ प्रभु। (-:- हे अंग्रेज़ प्रभु ! हम आपके हाथ जोड़ते हैं। पैर पकड़ते हैं। देखो नाक रगड़ते हैं । तुम हमें मारना मत । तुम्हारे तो कुछ हाथ न आयगा और हमारी बेचारी जान चली जायगी । जवान बहू, विधवा बेटी, बूढ़ी मा, और निठल्ले भाई अनाथ हो जावेंगे। अच्छा हमें काले पानी भेज दो मंजूर, पिटना भी मंजूर, गाली भी मंजूर, कोल्हू के बैल बनना भी मंजूर, कदन्न खाना और कुत्तों की तरह रहना भी मंजूर । जान तो बचेगी ? दुनिया तो दीखेगी ? जंगले से ही सही । हैजे में, प्लेग में और अकाल में मरना और बात है इसमें गले में फाँसी तो नहीं लगती ? दम तो नहीं घुटता ? गोली का जखम तो नहीं होता? धीरे २ नर्म गद्दों पर आराम से प्राण निकल जाता है। पर हाय, 8 अग्रेजों पर व्यंग