पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/७६

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तुम तो आनन फानन......ना, ना. ..देखो हम काली गऊ हैं। तुम ग्रेज बहादुर हो, देखो, तुम्हारी शराब से लाल हुई आँखें कैसी जल रहीं हैं। तुम्हारी वर्दी के बटन कैसे कस रहे हैं। और तुम्हारी मग़रूर मूळे अरर...... मूछों की बात-क्या कह गया.! वह तो पुराना नमूना था। हाँ, तुम्हारा सफाचट, चश्मा चढ़ा चेहरा कैसा वीर रस पूर्ण है। उस पर बहादुरी ख़तम है । सचमुच, श्राप असल अंग्रेज़ बहादुर हैं। पर हजूर ! आप हमसे डरते किस लिये हैं ? हमारा यह भारी डील डौल देख कर ? या बड़ी २ मूछे देख कर ? या बड़ी २ स्पीचे सुन कर ! अरे ! वह कुछ नहीं। आप लोग जैसे पुराने ज़माने के बेडौल हथियारों को और भारी २ जिरह बख्तरों को अपने अजायबघरों में कौतुक के लिये सजा कर रखते हैं- उसी तरह हमने यह भारी डील डोल-बड़ी २ मूछे-सिर्फ प्रदर्शिनी के लिये-आप हुजूरों की दिल्लगी के लिये रख छोड़ी हैं। यह हमारा पुरातत्व विभाग है । समझे आप ! और वह जो हम गाल बजाते हैं-उसका मतलब साफ है-'गर्जे सो बरसे नहीं" भला हम कहीं आपके सामने मर्द बन सकते हैं ? और झगड़ना लड़ना तो बदमाशों का काम है। हम हैं आबरूदार भारी भरकम । दस की सहेंगे, कहेंगे एक भी नहीं। इन हमारे मुसलमान भाइयों से ही पूछ लो-इन्होंने हमें मारा भी, लूटा भी. धर्म भी बिगाड़ा, आबरू भी ली, बहू बेटियों की इज्जत भी लूटी, पर to war . pie