पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/८४

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चाँदनी रात थी और उस मीलों लम्बे चौड़े मैदान में सफ़ेद बर्फ चमक रही थी। लम्बे और ऊँचे ऊँचे वृक्ष काले काले बड़े सुहावने प्रतीत होते थे । कुल कैदियों की संख्या २०० थी। और जो सेना उन्हें घेरे हुए थी, वह अनुमानतः १००० होगी। सेना का अधिपति एक पुराना जेनरल था। वह बूढ़ा आदमी था। वह रोबीला चेहरा लिये, अकड़ा हुआ घोड़े पर सवार था। उसने अपने चमड़े के दस्ताने पहने हुए हाथों से घोड़े को रास खींची, और सेना को पंक्तिबद्ध होकर खड़े होने की आज्ञा दी। प्रत्येक सैनिक पत्थर की मूर्ति के समान अचल था । उनकी बन्दूकों के कुन्दे चाँदनी में चमचमा रहे थे। सेना नायक ने सैनिकों को व्यूह बद्ध करने के बाद कैदियों को एक दोहरी पंक्ति में खड़े होने की आज्ञा दी। कैदी भी सैनिक थे और वे सैनिक वर्दियां पहने हुये थे सेना नायक ने कड़क कर आज्ञा दी "तुम लोगों को बोलशेविक होने के अपराध में अभी गोली मार दी जायगी' प्रत्येक व्यक्ति निश्चल था। सेनापति की आज्ञा का किसी ने विरोध नहीं किया । सेनापति की दूसरी आज्ञा थी, 'अपने अपने पैरों के पास अपनी २ कबरें खोद लो। “कैदियों ने कन्धों से कुदालियाँ उतार कर गड्ढे खोदने शुरू कर दिये । सैनिक चुपचाप यह सब दृष्य देख रहे थे। उस भयानक सर्दी में