पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/८५

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इतना कठिन परिश्रम करने से कैदियों के माथे से पसीना बह चला। जब कुल कबरें खुद चुकी तो सेनापति ने हुक्म दिया, "हर कोई अपनी २ वर्दियाँ उतार कर रख दे । क्योंकि वह सरकारी सिपाहियों के काम आवेंगी। गोली लगने से उनमें छेद हो जाने से उनके खराब होने का डर है। कैदियों ने चुपचाप अपनी वर्दियाँ उतार कर रख दीं। उनके सफेद शरीर शीशे के माफिक दमकने लगे। वे काँप रहे थे, किन्तु भय से नहीं, शीत से । सेनापति न क्षण भर उनका निरीक्षण किया हुक्म दिया "तुम लोगों में जो बोल्शेविक सिपाही न हो वह इन पंक्ति से हट कर अपने घर चला जा सकता है। उसे मैं स्वतन्त्र करता हूँ।" कैदियों ने अपने पास पास खड़े हुए मित्रों और बन्धुओं को नीरव दृष्टि से देखा। उनमें से बहुत से पिता पुत्र, चचा भतीजे और मगे सम्बन्धी थे। इसके बाद उन्होंने सामने सोते हुए गाँव की ओर दृष्टि डाली, जहाँ उनकी प्यारी पत्नियाँ और बच्चे मो रहे थे और यह नहीं जानते थे कि उनके पतियों पर क्या बीत रही है फिर उनकी दृष्टि मीलों लहराते खेतों पर दौड़ो गई। जिनको उन्होंने जोता और और जो अब पक कर खड़े थे। उनकी दृष्टि मन ओर दौड़ कर फिर एक दूसरे को देखने लगी, और जमीन में झुक गई । सेनापति ने फिर पुकारा-"क्या तुममें कोई ऐसा है. जो बोया था,