पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/९३

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( ८४ ) पुञ्ज ! लो, हम ह सेंगे, सहेंगे। चाहे जैसा हो, चाहे जो हो- हम हसेंगे-हम सहेंगे। हे आनन्दी बन्दी। तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है तो उन के बन्धन में बंधो-पर देखना हमारे बन्धन से मुक्त न हो जाना । हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं, चलो हे कारागार के अवतार ! हम सब वहीं तुम्हारे पास आते हैं !!