पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/९४

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मा ! रोना मत !!! उन मनहूस भीमकाय दीवारों के भीतर तुम्हारा नाजों का पाला हुआ लाल, ज्येष्ट की तपती दोपहरी में पत्थर की गिट्टियाँ फोड़ रहा है। शरीर से पसीनों का पनाला बह रहा है और दर्द के मारे उसका शिर फटा जाता है। उसके हाथ अन- भ्यस्त होने के कारण इतना काम करके लोहू लुहान हो गये हैं। वह हाँफ रहा है तमतमा रहा है । क्षण २ में उसकी बेड़ियाँ जो धूप में तप कर लाल हो गई है-पैरों को चहकाती हैं जिस से वह धीरज से एक आसन पर बैठ कर अपना काम नहीं कर सकता। उससे कुछ दूर पर तुम्हारे उस लाल के वृद्ध पूज्य पिता, वे तुम्हारे देवता-जो आधी शताब्दि तक कानून के प्रकाण्ड विद्वान गिने गए थे, दीवार की उड़ती हुई छाया में धूल में बैठे ® ये पंक्तियाँ श्री जवारलाल नेहरम की प्रथम जेलयात्रा पर सन् २२ या २३ में लिखी गई थीं। LLAND