पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/९५

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हमें जम । ८६ ) एक मन से चक्की पीस रहे है, मैदान की मैली धूल और आटे ने उड़कर उनके महान सिर और मर्वानी उज्ज्वल मूछों को धूल में मिला दिया है !! इन्हें देख कर मेरी अच्छी मा ! तुम्हारे पैरों पड़ता हूँ- तुम रोना मत ! तुम इस युद्ध प्रसंग पर इस अनी की चोट पर, आँसू बहा कर हमें कायर न बना देना, कहीं हमारी आँखों में आँसू न आ जायं । हजारों वर्ष में आज हमारी आँखों में यह भाग जली है-जो तुम्हारे आँसू देख कर वह बुझ गई-तो सर्वनाश हो जायगा। तुम भीतर जाकर बैठो, लेने दो-यह हमारी आनकी बाजी है-इस आन पर हमने सदा मान और जान की बलि दी है-उसी आन की शान पर आज तुम्हारे लाल और देव जूझ रहे हैं-तुम इस दृष्य को मत देखो इसे मैं देखू गा-सारे भारत के वीर नर देखेंगे। और फिर समस्त संसार देखेगा। तुमने इसे मा ! विलायत भेजा था ? सभ्यता और शिक्षा से छक आने के लिये । पर वह मात्रा से अधिक छक गया- स्वाद कभी संयम नहीं रहने देता-उठते ही दिनों में इसे उस सभ्यता और शिक्षा का अजीर्ण हो गया। तुमने रुपया उसके पैरों में बिछाया-पर वह कठोरता त्याग कर फूल न बन सका । मा! यह तुम्हारी छोटी भूलें थी-पर सबसे बड़ी भूल एक और थी,