पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१०१

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परिच्छेद]
(९९)
वङ्गसरोजिनी।

संसारचक्र भ्रमति वितस्ततः । , (भागवत)

      • स समय से(अर्थात सन् १२७६ ई०से) हमारा उपन्यास

जि प्रारम्भ होता है,उससे पश्चीस वर्ष पूर्व की कुछ घटनावली XXX का हम इस परिच्छेद में वर्णन करेंगे। उस समय बिहार में एक बड़े भारी भूम्यधिकारी (ज़िमीदार) रहते थे । उनका नाम राघवेन्द्रसिंह था। वे बड़े प्रतिष्ठित,धनाढ्य, प्रतिभाशाली और वीर पुरुष थे। उस समय बिहार में उनका बड़ा मान था और बिहारी लोग प्रायः बड़े से बड़े विवाद में उन्हें अपना पच मानते और उनके न्यायसे वादीप्रतिवादी दोनों संतुष्ट होते थे। उनकी स्त्री का नाम, जो भोजपुर के एक बड़े भारी ज़िमीदार सजनसिंह की (१) कन्या थीं, निर्मला देवी था । राघवेन्द्रसिंहको अपनी इसी (निर्मला )सती स्त्री से एक कन्या हुई, जिसका नाम कमला था । कुछ दिन बाद अपने दूरके नाते के एक निस्सन्तान भाई के मरने पर उनकी अनाथा कन्या को भी राघवेन्द्रसिंह ने अपने यहां स्थान दिया था । उस कन्या का नाम विमला था। विमला कमला से छोटी थी। जब येदोनों कन्याएं विवाह योग्य हुई तो राघवेन्द्रसिंह ने अपनी पड़ी कन्या (कमला) का विवाह तो भागलपुर के महाराज महेंद्रसिंह के प्रधानमत्री वीरेन्द्रसिंह के साथ कर दिया और दूसरी (छोटी) कन्या ( बिमला) का विवाह मुंगेर के एक प्रतिष्ठित जिमीदार देवेन्द्रसिंह के साथ किया गया। विवाहिता होने के अनन्तर दोनों कन्याए अपने अपने पति के घर रहने लगीं। ___ कन्याओं के विवाह के थोड़ेही दिनों पीछे राघवेंद्रसिंह परलोक- वासो हुए और उनकी भार्या (निर्मला) ने अपने पति का सहगमन (१) जिनके वश में भोजपुरके महावीर सुमसिद्ध पाबू कुंवरसिंह हुए। -