पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/७५

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परिच्छेद]
(७३)
वङ्गसरोजिनी।

आगन्तुक,--"यदि मै आपसे मल्लिका फो मागं ता क्या आप उसे मेरे हवाले कर सकते हैं !"

इतना सुनते ही मानो नरेन्द्रसिंह के ऊपर बन घहरा पडा और उन्होंने अपने दुर्दमनीय हदय के मथन को रोक कर बड़ी स्वच्छता से कहा,-"युवक ! तुम्हारे लिये हम अपना हदय बलि देते हैं और उसके साथही मल्लिका को भी तुम्हारे समर्पण करते है। अब यदि मल्लिका तुम्हे न स्वीकार करे, या हमें न पाने से वह आत्मघात कर डाले, तो इसमें हमारा मश नहीं है, क्योकि जैसा हमें अपने हदय पर अधिकार है, वैसा मल्लिका के हृदय पर नहीं है. तथापि हमसे जहां तक होसकेगा, हम इस बात के लिये प्राणपणसे उद्योग करेंगे कि जिसमें मल्लिका तुम्हें स्वीकार करे।"

इतना सुनते ही आगन्तुक की आंखों से आंसू बहने लगे और बडो कठिनता से उसने अपने उफनते हुए हदय के बेग को रोक कर कहा,-"श्रीमान् ! आप धन्य हैं और क्षत्रियकुल में आपही का जन्म लेना सार्थक है; किन्तु श्रीमान् । आप धैर्यावलयन करें।मैने तो केवल आपके हदय की परीक्षा ली थी।मैं मल्लिका की आपसे पृथक करना नहीं चाहता,क्योंकि उसे मैं अपनी बड़ी बहिन के समान मानता हूं।"

महाराज,-(घबराकर)“अद्भुत युवक' तो तुम क्या चाहते हो?"

आगतुक,-"श्रीमान ! आता मुझे अभिलषित पारितोषिक प्रदान करने की शपथ खाही चुके हैं ! अस्त, अब जलदी क्या है, जब समय आवेगा तो मैं मांग लंगा । अस्त, इन बातों को जाने दीजिए और हमारी एक बात का उत्तर दीजिए । क्या आप बादशाह से मिलने के लिये 'मोतीमहल' नामक दुर्ग की और जारहे हैं ? "

महाराज,-"हा! तुम्हारा अनुमान बहुत ठीक है।

आगतुक,-"तो अब आपके उधर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। कारण यह कि अब बादशाह-सलामत उस दुर्ग में नहीं हैं, बरन अपने शिवर में, जो आपके दुर्ग से दस कोस उत्तर एक सुहावने बन में कल आकर संस्थापित हुआ है, क्योंकि बादशाह के मोतीमहल दुर्ग में अब न रहने का कारण यह है कि एक तो आप ठीक समय पर उनसे मिल नहीं सके थे, दूसरे जिस तरह आपके दुर्ग का विनाश करने के लिये शत्रओं ने सुरक्षा में बारूद बिछाई थी, उसी प्रकार मोतीमहल नामक दुर्ग में भी बारूद बिछाई गई