पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/३४

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भाव—यदि पेट की चिन्ता न होती तो कोई चिड़िया जाल में न फँसती, बल्कि कोई बहेलिया जाल ही न बिछाता।

इसी तरह इस बात को कि न्यायाधीश भी रिश्वत से वश में हो जाते हैं, वह यों बयान करते हैं:—

"हमा कत रा दन्दाँ वतुर्शी कुन्द गरदद,
मगर काज़ियाँ रा वशीरीनी।"

भाव—अन्य मनुष्यों के दाँत खटाई से गुट्ठल हो जाते हैं लेकिन न्यायकारियों के मिठाई से।

उनको यह लिखना था कि भीख माँगना जो एक निन्द्य कर्म है उसका अपराध केवल फ़क़ीरों ही पर नहीं बल्कि अमीरों पर भी है, इसको वह इस तरह लिखते हैं:—

"अगर शुमा रा इन्साफ़ बूदे व मारा क़नाअत,
रस्मे सवाल अज़ जहान बरख़ास्ते।"

भाव—यदि तुम में न्याय होता और हममें सन्तोष, तो संसार में माँगने की प्रथा ही उठजाती।

इन दोनों ग्रन्थों का दूसरा गुण उनकी सरलता है।