पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४६

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कहते हैं कि एक भिक्षुक ने बहुतसा धन जमा कर रक्खाथा। वहां के बादशाह ने उसे बुला कर कहा, सुना है कि तुम्हारे पास बड़ी सम्पत्ति है। मुझे आजकल द्रव्य की बड़ी आवश्यकता आपड़ी है। यदि उसमें से कुछ दे दो तो कोष में रुपये आतेही मैं तुम्हें चुका दूंगा। फ़क़ीर ने कहा जहां-पनाह, मुझ जैसे भिखारी का धन आप के काम का नहीं है क्योंकि मैंने मांग मांग कर कौड़ी कौड़ी बटोरी है। बादशाह ने कहा इसकी कुछ चिन्ता नहीं, मैं यह रुपये काफ़िरों, अधर्मियों कोही दूंगा। जैसा धन है वैसा।


एक वृद्ध पुरुष ने एक युवती कन्या से विवाह किया अपने कमरे को फूलों से खूब सजाया। उसके साथ एकान्त में बैठा हुआ उसकी सुन्दरता का आनंद उठाया करता। रात भर जागता रहता और रोचक कहानियां कहा करता कि कदाचित् उसके हृदय में कुछ प्रेम उत्पन्न हो जाय। एक दिन उससे बोला तेरा नसीब अच्छा था कि तेरा विवाह मेरे जैसे बूढ़े से हुआ जिसने बहुत ज़माना देखा है, सुख-दुःख का बहुत अनुभव कर चुका है। जो मित्रधर्म का पालन करना जानता है, और जो मृदुभाषी, प्रसन्न चिन्त, और शीलवान है। नहीं तू किसी अभिमानी युवक के पाले पड़ी होती, जो रात दिन सैर सपाटे किया करता, अपने ही बनाव सिंगार में भूला रहता, नित्य नये प्रेम की खोज में रहता, तो तुझसे रोते न बनता। युवक लोग सुन्दर और रसिक होते हैं