पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१००

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वे फल सँवारते हैं और दातुन कुटना भूल गये हों तो याद आते ही दातुन लेनेके लिये दौड़ते हैं, वह सब अनकी अपार भक्ति बताता है । और अिस भक्तिको सीखनेके लिझै अनके पैरोंमें बैठने की प्रेरणा मिलती है । हीरालाल शाहके पत्रका सुल्लेख अिस डायरीमें हो गया है । अस पत्रमें अन्होंने बताया था कि कुछ मामलोंमें खास अर्थ बिठानेका गुर सुनके हाथ लग गया है । और लिखा था कि आकाशदर्शनके बारेमें और कोसी चीज या किताब चाहिये तो भेज दी जायगी । बापूने अन्हें अक पत्र हाथसे ही-वायें साथले .-लिखा: " भाजीश्री हीगलाल, " अपनी पुस्तकें और प्रेमपूर्ण पत्र मिले । अक हफ्ते देरसे मिले क्योंकि डाधाभासी भूल गये थे। पुस्तकें अपयोगी सिद्ध होंगी । आपके पत्र और टिप्पणियाँ अपयोगनें वृद्धि करंगी । आप मानते है अतना लोभ मुझे नहीं है । अितना मामूली ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहता हूँ कि जिससे मैं आकाशमें ओश्वरको ज्यादा अच्छी तरह देव स.। आपको ठीक लगे वही खगोल- विद्याकी छोटसी पुस्तक भेज देना । आपकी पुस्तकोंकी संभाल रडुंगा । मिस बारेमें आपकी सावधानी मैंने देख ली है। औसी पुस्तके मित्रोंसे अकाक लिया नहीं करता है । कहीं खो जाय या बिगड़े तो! “ आपकी मेहनत और सुबइपनकी जितनी तारीफ को जाय अतनी थोड़ी है । लेकिन मुख्य कुंजी मिल जानेका दावा बहुत ज्यादा तो नहीं है ? यह कुंजी क्या है ? असे कुंजी मानने और मुख्य कुंजी माननेके आपके पास सबल प्रमाण है ? विशारदोंने अन्हें स्वीकार किया है ? अपनी खोजसे आप किस फलके निकलनेकी आशा दिलाते हैं ? जिसमें चरखेवाली शुम मुख्य कुंजीके अभावका दोष तो नहीं है ? मैं आपसे समझनेके लिये तैयार हूँ। और तटस्थतासे आपकी दलीलोंको तोलूंगा। मगर शोधकको साधकको शोभा दे, असी नम्रता अपने में पैदा कीजिये । मैं जानता हूँ कि वह पैदा करने से नहीं आती। सच्ची खोजोंमें वह छुपी ही रहती है | अपने पास हजारों प्रमाण हों तो भी शोधकको अपनी खोजके बारेमें शंका रहती ही है । नतीजा यह होता है कि जब वह अपनी खोज दुनियाके सामने रखता है, तब असे साक्षात्कार हो चुकता है । जगत विस्मित होता है और अस पर विश्वास करता है । असके वचनमें सत्ता होती है, तेज होता है। संसार असकी चातको मान लेता है । असके प्रमाणोंसे जगत चकित हो जाता है। क्योंकि शोधक तो अपनी खोजकी दसों दिशाओंसे जाँच कर चुकता है। ये सब बातें आपकी खोजके बारेमें सच हों, तो मुझे कुछ कहना नहीं है । औसा हो तो आपको सहल प्रणाम ! परमात्मा करे जैसा ही हो । ९३ .