पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०८

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'चरखेको चलाने लगे। अिसमें आराम मिलना कितना सम्भव होगा, यह तो में नहीं समझ सका । कारण बायाँ हाय तार निकालनेके बजाय चक्कर चलाता है और दायाँ तार निकालता है। सिर्फ दोनों पर पड़नेवाला जोर अदलबदल हो जाता है । मगर बापूने तो यह प्रयोग शुरू कर ही दिया । थोड़ी देर तो तार निकालना कठिन हो गया । नासिकमें मेरा दायाँ हाथ बहुत दुखता था, तब मैंने यह तरकीब करके देखी थी। मगर मैं अक भी तार नहीं निकाल सका था, भिसलिओ असे छोड़ दिया था । परन्तु बापू तो चलाते ही रहे । कोभी डेढ़ घंटे अस पर प्रयोग जारी रखा और सात पृनियाँ कातीं । सातवीं पृनीसे तो हमेशाकी तरह ही तार निकल रहे थे। अिसलि खुश होकर मुझे कहने लगे- "देखो, ९५ तार निकल आये हैं और मेरे रोजके ३७५ पूरे हो गये हैं, क्योंकि कलके २८२ बचे हुझे हैं । मैंने कहा -" बापू, अिसमें आराम तो थोड़ा ही मिलता है ।" बापू कहने लगे-" आराम तो आदत पड़ जायगी तब मिलेगा। न मिले तो भी यह घाटेका व्यापार नहीं है, क्योंकि दायाँ हाय कभी बिलकुल रुक जाय, तो यह आदत पड़ी हुी अच्छी है !" आज मेजर मेहताने बापूकी कोहनी पर बिजलीसे दवाव देनेका अिलाज किया। मेजर मार्टिन छुट्टी पर गया तो अपने घरकी फालतू बोतले यहाँके अस्पतालके लिओ भेज गया । बापूको यह बात मालूम हुी तो बोले-“देखो तो अिसे जेलियोंका कितना खयाल है ! ये लोग जैसे हैं कि जहाँ अिनका स्वार्थ न हो अन सब मामलोंमें सीधे और अपना कर्तव्य समझनेवाले होते हैं।" गरीबी- दारिद्रयका हेनरी ज्यॉर्जका वर्णन कैसा गले अतरनेवाला है ? Poverty is the open-mouthed, relentless hell which yawns beneath civilized society. गरीबी सभ्य समाजके पेंदेमें मुंह फाड़े खड़ा हुआ निष्ठुर नरक है । आज बापूने यरवदा चक्रके मोदियेमें फेरबदल किया । कल वाले चरखेकी गिरियाँ ठीक नहीं थीं, अिस कारण अपना १८-४-३२. ही चरखा ठीक किया, और बायें हायका प्रयोग जारी रखा । परिणाम कलसे अच्छा रहा । कल ९५ तार पूरे करनेमें ३|| घण्टे लगे थे, आज.८५ तार अहामी घण्टेमें निकले । वल्लभभाीने कहा ." अिसमें कुछ भी फायदा नहीं होगा। 'पाकी कोठीले काना न चढे ।' हमारा पुराना तरीका चलता था, असे चलने दीजिये न । बापू कहने लगे "कलसे आज अच्छी प्रगति हुी है । अिससे कोी अिनकार नहीं कर सकता । " वल्लभभाभी कहने लगे "आश्रममें किसीको मालूम हो १०३