पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१२६

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सहमत हों, तो आपको अिन घातक प्रदर्शनोंको रोकनेके लिओ दैनिक पत्रोंमें हलचल शुरू करनी चाहिये । मैं समझता हूँ आप जानते होंगे कि अिस किस्मके प्रयोग करते हुअ अक आदमीने हालमें ही रंगूनमें अपनी जान गँवा दी । आपका मो० क० गांधी आज ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयके लिओ 'आत्मकथा' के संक्षिप्त संस्करणके नये प्रकरण पूरे किये । बापूने सब देख लिये । शामको २७-४-३३२ वल्लभभाभी बोले "पिछले साल यहाँ अच्छा मोची या, अब अच्छा मोची नहीं रहा । दो दो सिंच चौड़े पहे कर लाया। अिसलिभे मुझे जूते वापस कर देने पड़े।" बापू बोले. [• चमड़ा मॅगवाकर सी दूं ? दे तो सही कि मेरी सीखी हुी कला अभी तक मुझे याद है या नहीं ? यह तो आप जानते हैं न कि मुझे अच्छे जूते बनाना १ आता था? और मेरी कारीगरीका नमूना सोदपुरके खादी प्रतिष्ठानमें है । वहाँ सोराबजी अहाजनिया आये थे और अन पर सत्यानन्द बोसने बहुत प्रेम बरसाया। सो अन्होंने मुझे लिखा था कि अिस आदमीको• अपने हाथके जूते भेजें तो अच्छा । मैंने असे भेज दिये थे, मगर वह तो बड़ा विनयी बंगाली ठहरा । असने कहा- 'ये जूते मेरे पैरोंके लिअ नहीं, मेरे सिरके लिओ हैं।' सुसने अक दिन भी अन्हें काममें नहीं लिया | रख छोड़े और खादी प्रतिष्ठानके , संग्रहालयको दे दिये ।" यह किस्सा बयान करके कहने लगे-"महादेव, अिस संक्षिप्त संस्करणमें मेरे जूते बनानेका यह किस्सा कहीं पड़नेमें आया ? आना चाहिये । टॉलस्टॉय फार्ममें यह धंधा अच्छा चलता था । मैंने तो बच्चोंके कितने ही जूते तैयार किये हैं। कॅलनवक अक ट्रेपिस्ट मोनेस्टरीमें जाकर सीख आये और अन्होंने हमें सिखा दिया ।"

मिल्सका पत्र आया था । असने समाचार दिया कि चीन जा रहा और लिखा: "We have got marching orders and we won't come back until you have made peace with Government." " हमें यहाँसे कूच कर हुक्म मिल गया है । आप सरकारके साथ सुलह नहीं करेंगे, तब तक हम वापस नहीं आयेंगे ।" बापूने कहा "विदेशी संवाददाताओंको निकाल दिया लगता है । अिसका अर्थ में यही करता हूँ । सेन्युअल होर यह सब कर सकता है। अिस १२३ -