पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२०

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द्विपष्टौ वत्सरे काले किंचित् शमनमादिशेत् किंचित् त्वातंत्र्यमादेश्यमस्वास्थ्यं च भवेन्नर : विदेशगमने चैव पंचपष्टिक पूर्वके श्वेतःप्रमु सार्वभौमस्तस्य दर्शनमादिशेत् तन्मूलात्कार्यसिद्धितिकस्य भविष्यति पश्चास्वदेशवासी च आश्रमे वासवान् भवेत् शानमार्गप्रवृत्तिश्च जातकस्य भविष्यति सप्तति वत्सरे पूर्व योगसिद्धिश्च जायते । वल्लभभाभीको औसा लगा कि ये इलोक भावी पर खूब प्रकाश डालने- वाले है। मैंने कहा "जिसमें सम्राट्के सायकी जिस मुलाकातकी बात है, वह पिछले साल हुओ मुलाकातकी बात नहीं, पर भावी मुलाकातकी बात होनी चाहिये ।" कुछ भी हो, अिसमें मनोरंजन तो काफ़ी रहा । -

- बापू 'वेट परेड ' पष्ट रहे थे । मौन तीन बजे लिया। मगर पढ़ते पढ़ते यह वाक्य आया तो मुझे बताया और पढ्नेको कहा : 'every body had to choose between self-indulgence and self-control' (हरेक मनुष्यको स्वच्छन्दता और संयमके बीच चुनाव करना था)। मैंने वापूकी नीतिनाशके मार्ग पर' (Self-restraint v. Self-indulgence) पुस्तककी याद दिलायी । असा लगा मानो बापू यह कह रहे हों कि यह सारी पुस्तकका सार है।

खा चुकनेके बाद वल्लभभाी सदाकी भाँति दातुन कूट कर तैयार करने बेटे । बादमें बोले " गिनतीके दाँत रह गये हैं, तो भी बापू घिस घिस करते हैं। पोला हो तो ठीक, मगर वे तो मूसल बजानेकी कोशिश करते हैं । " मैंने विनोदको फेरकर कहा--"सन् '३०में हमारा तो मूसल भी खूब बजा था अर्थात् असम्भव-सा दिखामी देनेवाला आन्दोलन भी काफी सफल हुआ था ।" बापूने 'हाँ के अर्थमें मुसकरा दिया । वल्लभभाभीने कहा "अिस बार भी जैसा ही है । मगर क्या करें, Caravan passes ! (कारवाँ-संघ आगे चला जा रहा है ! )"

  • गुजरातोमें अक कहावत है 'मुसल वजाना', जिसका मतलब है असम्भव काम

करनेकी बेकार कोशिश करना । १३