पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२१३

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"सिन्दुलाल जन सपना अवता पूज सरते हैं। मैं यह नहीं कहूंगा कि रविवमाके निजापन घरनेका भी निवेध है । भावना मुख्य चीज है।" मन शान मार्ग पर यात निकली थी। तय बापू कहने लगे- माथे, तब उनकी पुस्तक लाये थे और असे पानेको कहा था। शुसमें लिना भाग धितना भद्दा और विभत्स आया कि मैं असे पर न सका। नाची कारको भागी वही तो मैं टा दी हो गया और पुस्तक छोड़ दी। गगनल पाते वक्त हुी थी । असका अनुवाद और असपर नेया। टिगियों परते समय ती असा लगा कि असे पानेकी गिरना बेकार है।" आज पद रिव्यू में आया हुआ लास्कीका अक लेरक गोलमेज समयके सुनसान दायका अच्छा मानाफोड करता है । वह परकर सुनाया तो बात करने लगे "लाकी मेकीका सोयापन समझ गया दीखता है। मुझे नमो कि अमकी और इनकी आय बोलनेवाला में ही या, क्योंकि सेमीफे बन अपनी राय कभी छिपानी ही नहीं।" "या, मेकी रपतका जवाब अब आना चाहिये।" मोनमा ?" " लंगके बारे में आपने लिया था मो।" " पर लिखा कर ?" मी ." अरे या, भिस तर, भूगी तो काम से चलेगा ? सनी मगज लेनादेन?" लिनी याद दिलानी। कितनी ही तफसील सतायो तर बापू --पला मानता है।" नाम: पाशिद अलका या पला अदारण आया ३निया भर बनेकी गले में जानता। मगर अिसे में 7 777 Et sino 9777 ge; "या, आप मोटी

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