पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३१

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नोट करने जैसी कोी खास बात नहीं । छगनलाल जोशीको भेजनेकी पुस्तकोंकी फेहरिस्त तैयार करनेको कहा । असमें वेल्सफोर्ड, २०-३-३२ कोजियर और डयूरप्टकी पुस्तकें दर्ज करनेसे अिनकार कर दिया; क्योंकि ये राजनीतिक मानी जाती हैं, और 'क' वर्ग: वालोंको नहीं मिलती । अिन्हें दर्ज करते करते हर पुस्तकके बारे में बातें होती जाती थीं। बापूने कहा- . साकेत' पढ़ जाओ, दो दिनका काम है।" ४५० पन्नेका काव्य दो दिनमें पूरा करना मुश्किल तो ला । मगर यह समझ कर कि बापू विना विचारे नहीं कहेंगे, शुरू कर दिया और रातको सोने तक ३०० पन्ने पर डाले । वह इतना आकर्षक था। सुबह पौने चार बजे अठना न होता, तो पूरा करके ही सोता । 'साकेत' आज चार बजे पूरा किया । अपूर्व मनोहर रचना है । रामायणकी कथाकी बुनियाद लेकर अस पर कविने अपनी २१-३-३२ सुन्दर कल्पनासृष्टि रची है । भाषा सरल और सुबोध; काव्यप्रवाह अकृत्रिम और प्रसादमय, स्वच्छ बहते हुओ झरनेकी तरह शुरूसे अग्वीर तक बहता जाता है । यह कथा कितनी ही बार पदिये. तो भी आंस आये बिना कितने प्रसंग पढ़े ही नहीं जा सकते । यही हाल अिस बार भी हुआ । अमिलाका चित्र स्वतंत्र ही है। जिसमें खुब नवीनता और गोभा है। सिर्फ नवाँ सर्ग जरा संस्कृत कवियोंकी जरूरतसे ज्यादा नकल मालूम होता है । फिर भी सारा काव्य मैथिलीशरण गुप्तकी अक चिर- स्थायी कृति बन कर रहेगा। अिसका पढ़ना मनोहर नहीं, बल्कि पावक है, सुन्नतिपद है । शुस्से आग्विर तक जितने अन्नत वातावरणमें रखनेवाली यह सुन पुस्तकोंमेंसे अक है, जो क्वचित् ही पड़नेमें आती हैं । आज और कल मिलकर बापूने आश्रमके लिअ चालीस खत लिखे (भिमाम साहयके संस्मरणों के सिवाय)। अक दो पत्र जो अल्लेखनीय हैं, शुनका जिक यहाँ करता हूँ । जुगतरामने बाहरकी स्थितिका हवाला देते हुझे लिया था कि कुछ लोग खड़े हैं, कुछ लोग गिर गये हैं। असके जबावमें याने लिखा: " तुम्हारे पत्रकी हमने आगा रखी ही थी । जन्म लेनेवाले सभी जीते नीं रहते। और जब हवा बिगड़ती है, तब मृत्यु मख्या वष्ट जाती है। जिस- जो लिखते हो, असपर मुझे आश्चर्य नहीं है । आश्चर्य और आनन्द या है कि मृत्यु मा ही नहीं। और मौतका अफसोस किस लिये? मरने सापककी मौत स्वागत योग्य है । और जो मरते हैं, ये तो फिर जन्म लेनेके