पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३९५

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- 66 - बापू "नहीं, वल्लभभाभी, निवाड़में धूल भर जाती है, निवाइ धुलती नहीं; अिस पर पानी अड़ेला कि साफ ।" वल्लभभाभी "निवाड़ धोबीको दी कि दूसरे दिन धुलकर आी।" बापू मगर यह रस्सी निकालनी नहीं पड़ती, यों ही धुल सकती है।" मैं " हाँ बापू, यह तो गरम पानीसे धोसी जा सकती है और अिसमें खटमल भी नहीं रह सकते ।" वल्लभभाभी ." चलो, अब तुमने भी राय दे दी । अिस खाटमें तो पिस्सू खटमल अितने होते हैं कि पूछिये नहीं ।' बापू " मैं तो भिसी पर सोझूगा । भले ही आप जैसी न मैंगावें । मेरे यहाँ तो मुझे याद है बचपनमें असी ही खाटें काममें लेते थे। मेरी माँ अिन पर अदरक छोलती थी । मैं यह क्या? यह तो मैं नहीं समझा।" बापू अदरकका अचार डालना होता, तो अदरक को चाकूसे साफ न करके खाट पर घिसते, जिससे छिलके सब साफ हो जाते।" वल्लभभाभी " अिसी तरह अिन मुट्ठीभर हड्डियों परसे चमड़ी अधड़ जायगी । अिसीलिओ कहता हूँ कि निवाड़ लगवा लीजिये । बापू " और निवाड़ तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम जैसी हो जायगी । अिस खाट पर निवाड़ शोभा नहीं देगी; अिस पर तो नारियलकी रस्सी ही अच्छी लगेगी । और पानी डालते ही बिलकुल धुल जाय, जैसे कपड़े धुल जाते हैं । यह कितना आराम है ? और रस्सी कभी सड़ेगी नहीं !" वल्लभभाभी कहने लगे " खैर, मेरा कहना न मानें तो आपकी मरज़ी।" खाट बरामदेसे नीचे लाी गयी । नीचे लानेके बाद वल्लभभाीने कहा- परन्तु बरसात आ गयी तो?" बापू ." तो सुपर ले लेंगे।", वल्लभभाभी नु किम् ?" बापू “यह तो मैं जानता ही था कि आप अिस श्लोकका अपयोग करनेके लिंगे ही यह सवाल पूछ रहे हैं ।" । " ततो दुःखतरं आज जन्माष्टमी है, अिसलिओ जुलूस नहीं आया । जेलकी छुट्टी है । आज बापू कहने लगे अब तुम तैयार रहना, भला । २४-८-३२ निकालना होगा तो यो समझो कि समय आ ही गया है।" " यह साँप छदर वाली बात हो गयी। आपको भीतर रखकर अपवास कराना तो मुश्किल है ही । बाहर रखकर अपवास कराना भी कठिन है ।" वल्लभभाभी "मगर अिन लोगोंके लिओ तो मैंने कहा