पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३९९

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, बापू "नहीं, वल्लभभाी, निवाड़में धूल भर जाती है, निवाइ धुलती नहीं; जिस पर पानी झुड़ेला कि साफ ।" वल्लभभाभी "निवाइ धोबीको दी कि दूसरे दिन धुलकर आओ।" बापू मगर यह रस्सी निकालनी नहीं पड़ती, यों ही धुल सकती है।" मैं – “हाँ बापू, यह तो गरम पानीसे धोसी जा सकती है और अिसमें खटमल भी नहीं रह सकते ।" वल्लभभाभी "चलो, अब तुमने भी राय दे दी । अिस खाटमें तो पिस्सू खटमल अितने होते हैं कि पूछिये नहीं ।" बापू. "मैं तो अिसी पर सोशृंगा। भले ही आप जैसी न मँगावें । मेरे यहाँ तो मुझे याद है बचपनमें असी ही खाटे काममें लेते थे। मेरी माँ अिन पर अदरक छीलती थी।" "यह क्या? यह तो मैं नहीं समझा ।" बापू " अदरकका अचार डालना होता, तो अदरक को चाकसे साफ न करके खाट पर घिसते, जिससे छिलके सब साफ हो जाते । वल्लभभाभी " अिसी तरह अिन मुट्ठीभर हड्डियों परसे चमड़ी अधड़ जायगी । अिसीलि) कहता हूँ कि निवाड़ लगवा लीजिये ।" बापू "और निवाड़ तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम जैसी हो जायगी । अिस खाट पर निवाड़ शोभा नहीं देगी; अिस पर तो नारियलकी रस्सी ही अच्छी लगेगी । और पानी डालते ही बिलकुल धुल जाय, जैसे कपड़े धुल जाते हैं । यह कितना आराम है ? और रस्सी कभी सड़ेगी नहीं !" वल्लभभाी कहने लगे “खैर, मेरा कहना न मानें तो आपकी मरज़ी ।" खाट वरामदेसे नीचे लाजी गयी । नीचे लानेके बाद वल्लभभाीने कहा- परन्तु बरसात आ गयी तो?" बापू- अपर ले लेंगे।", वल्लभभाभी " ततो दुःखतरं नु किम् ? वापू "यह तो मैं जानता ही था कि आप अिस इलोकका झुपयोग करनेके लिझे ही यह सवाल पूछ रहे हैं।" - " तो - आज जन्माष्टमी है, अिसलिओ जुलूस नहीं आया । जेलकी छुट्टी है । आज बापू कहने लगे अब तुम तैयार रहना, मला । २४-८-३२ निकालना होगा तो यो समझो कि समय आ ही गया है।" "यह साँप छदर वाली बात हो गयी । आपको भीतर रखकर अपवास कराना तो मुश्किल है ही । बाहर रखकर अपवास कराना भी कठिन है।" वल्लभभाभी- " मगर अिन लोगोंके लिओ तो मैंने कहा ३७६