पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१३३

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  • भारतीय बुद्धका समय

पड़ा था। विरक्त होनेके कारण राज्यका मान्य है। वही नहीं, किन्तु इल.बातका अपना हक छोड़कर वह जङ्गलको निकल समर्थन करनेवाली. एक दूसरी बात हमें गया था। महाभारतके आदि पर्वके वे मिली है । महाभारतमें पांचलोंको बार अध्यायमें भी . यह बात स्पष्ट रीतिसे बार "सोमका” कहा है। द्रोणने अश्व- बतलाई गई है। स्थामाको “पांचालों पर आक्रमण करो" 'देवापिः खलु बाल एक अरण्यं विवेश। कहते समय कहा है कि:-' शंतनुस्तु महीपालो बभूव ॥ सोमका न प्रमोक्तम्या जीवितं परिरक्षता । ऋग्वेदेके "बृहइंधता" : ग्रन्थमें यही ___ "अपने प्राणोंकी रक्षा करके सोमको बात बतलाई गई है । वह श्लोक. इस | को छोड़ मत देना।" एक स्थान पर द्रुपद प्रकार है:- राजाको भी सोमककी संज्ञा दी हुई है। आर्टिषेणश्च देवापिः कौरव्यश्वशंतनुः। , बहुत दिनोंतक इस बातका पता नहीं भ्रातरौ राजपुत्रौ च कौरवेषु बभूवतुः॥ लगता था कि ये सोमक कौन थे। परन्तु • "प्रार्षिषेण देवापि, और कौरव्य | वैदिक इन्डेक्सके आधार पर मालूम हुआ शंतनु दोनों भाई, राजपुत्र थे । उनका कि ऋग्वेदमें "सोमकः साहदेव्यः” कह जन्म कौरव वंशमें हुअा " देवापिको कर सहदेव-पुत्र सोमकका उल्लेख एक "आर्टिषेण" इसलिये कहा है कि वह । सूक्तमें किया गया है । ऐतरेय ब्राह्मण में ऋष्टिषेण ऋषिका शिष्य हो गया था। भी वर्णन पाया जाता है कि सहदेव-पुत्र देवापि वड़ा तपस्वी था। ऐसी एक कथा सोमकने एक राजसूय यज्ञ किया था: है कि एक बार शंलनुके राज्यमें अनावृष्टि और पर्वत तथा नारद ऋषियोके कथ हो गई थी और उस समय शंतनु के लिये नानुसार, विशिष्ट रीतिसे, सोमरस पर्जन्यकी स्तुति करके देवापिने वर्षा निकालनेके कारण उसको अत्यन्त कीर्ति करवाई थी । इस अवसर पर प्राष्टिषेण हुई थी। यह सोमक दृपदका पूर्वज था । देवापिने जो सूक्त बनाया वह ऋग्वेदके हरिवंश (१० ३२) में सहदेव, सोमक, दसवें मंडलमें प्रथित किया गया है। जन्तु, पृषत् और द्रुपद, इस प्रकार पीढ़ी ऐसी समझ है कि इस दसवे मंडलमें, बतलाई गई है। इससे इस बातका कारण अनेक ऋषियोंके छोटे छोटे अलग अलग मालूम होगा कि महाभारतमें धृष्टद्युमको सूक्त है । खैर, देवापिकी कथासे अनुमान पार्षत और द्रौपदीको पार्वती क्यों कहा होता है कि भारतीय युद्ध ऋग्वेदके गया है। “साहदेव्यः सोमकः" ऐसा उल्लेख अनन्तर १०० वर्षों के भीतर हुा । कारण ! ऋग्वेदमें आया है। सोमक राजस्य यह है कि देवापिका भाई शंतनु, शंतनुके | करनेवाला बड़ा सम्राट् था, अतएष उसके पुष भीम और विचित्रवीर्य तथा विचित्र- वंशजोंको “सोमकाः" नाम. मिला; और वीर्यके पुत्र धृतराष्ट्र और पांडु थे और यह नाम भारतमें बार बार पाया जाता है। युद्ध के समय भीष्म बुड्ढे हो गये थे, परन्तु दुपद भारतीय युद्ध में था, इस बातसे भी जीवित थे। इस तरहसे पार्गिटर साहब- यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि, भारतीय ने इस बातको सबसे पहले संसारके युद्ध ऋग्वेदके अनन्तर चार पाँच पीढ़ियों- सन्मुख प्रकट किया है, कि भारतीय युद्ध में अर्थात् १००-१५० वर्षों में हुआ। का मेल अन्वेदके समयसे होता है। इससे हमारे अनुमानका पहला हमें भी पार्गिटर साहबका यह सिद्धान्त साधक प्रमेय सिम हो गया जो कि इस