पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५४
महाभारतमीमांसा

१५४

  • महाभारतमीमांसा *

- - M उससे जो अनुमान हो, उसपर विचार भारती युद्ध हुश्राः अथवा उत्तरी पोरके करें। दुर्योधनकी ओर १३ अक्षौहिणियाँ तथा दक्षिणी भोरके प्रायोंमें यह लड़ाई थीं। उनमें जो राजा लोग थे, पहले उन्हीं- हुई; अथवा अासपासके पार्यों और मध्य को देखना चाहिये । दुर्योधनके दलमें देशके पार्यों में यह युद्ध हुआ। दुर्योधनकी पहला शल्य था। यह मद्रोंका स्वामी ओर कुरुक्षेत्रसे लेकर पञ्जाबके गान्धार, था। इसका राज्य पक्षाबमें था। दूसरा काम्बोजतकके अर्थात् अफगानिस्तानतक- भगदत्त था । पूर्वकी ओर चीन-किरातो-' के सभी राजा, इसी प्रकार सिन्धके राजा का यह एक गजा था । तीसरा भूरिश्रवा लोग, काठियावाड़ और अवन्ति (उज्जैन) भी पक्षाबका ही नरपति था। चौथा तकके राजा और पूर्वमें अयोध्या (कोसल), कृतवर्मा भोजोका भूपाल था। इसका । श्रङ्ग. प्राग्ज्योतिष पर्यन्त (कर्ण और भग- राज्य काठियावाडके समीप था । पाँचवा दत्त) राजा थे। इधर दसरे दलमें जयद्रथ था जो सिन्धु देशका राजा था। पागडवोंकी ओर दिल्ली, मथुरा, (शौर- छठा सुदक्षिण, काम्बोजके अफ़ग़ानिस्तान- सेनी), पाश्चाल, चेदि, मगध और काशी . का अधिपति था। सातवाँ माहिष्मतीका वगैरह यमुना किनारेके और गङ्गाके नील था, यह नर्मदाके महेश्वरका राजा : किनारेके मध्य देशके राजा थे। इससे यह था । पाठवे और नवे अवन्तिके दो राजा: कहने में कोई हानि नहीं कि ये सब नये दसवे पजाबके केकय: और ११ वीं पाये हुए चन्द्रवंशियोंके लोग थे। उत्तर अक्षौहिणीमें गान्धारके राजा शकुनि, ओरके लोगोंमें चन्द्रवंशके, सबसे पहले शिवि और कोसलोंके राजा बृहद्रथ आये हुए, कुरु थे। इन दोनों दलोंमें बहुत आदि थे। पाण्डवोंकी और सात्यकि मतभेद रहा होगा। दोनोंके रीति-रवाजो- . युयुधान द्वारकाका यादव था। दूसरा में भी फर्क रहा होगा । और यह तो पहले चेदिका धृष्टकेतु था। यमुना किनारे ही लिखा जा चुका है कि इनका भाषा- कानपुरके समीप चेदि लोग रहते थे। भेद अाजकलकी भाषाओंमें भी मौजूद तीसरा, मगधोंका जयत्सेन था। चौथा, है । इसके सिवा यह मान लेनेमें भी कोई समुद्र किनारका पागड्य था । पाँचवाँ हानि नहीं कि मध्यदेशी लोग चान्द्र वर्ष दुपद पाञ्चालका था । गङ्गा-यमुनाके मानते होंगे। वे लोग पाण्डवों में इसी मध्यमें अलीगढ़के आसपासका प्रदेश कारण श्रा मिले होंगे। पाशालोका था । छठा, मत्स्योंका विगट लोगो ताज़ा दम था और उत्साह था। जयपुर, धौलपुर आदिके भागों में भी काफ़ी था। उनमें हिन्दुस्थानके मूल मत्स्य देश था। सातवें, अन्यान्य राजा निवासियोंसे हिलमिलकर रहनेकी प्रवृत्ति लोग-काशीका धृष्टकेतु, चेकितान, अधिक थी । इन लोगोंके वर्णमें जो युधामन्यु और उत्तमौजा प्रभृति राजा जरासा साँवलापन आ गया, वह मूल- लोग (उद्योग० अ०१६): इस प्रकार पाण्ड- निवासियोंसे मिलनेके ही कारण प्राया; वोकी ओर सात अक्षौहिणियाँ और दुर्यो-: फिर भी इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे धनकी ओर ११ अक्षौहिणियाँ थीं। इस : वैदिक धर्माभिमानी थे और आर्य जाति- फेहरिस्तसे एक बड़ा अनुमान यह के तो निश्चित ही थे। निकाला जा सकता है कि पहले पाये हुए हिन्दुस्थानमें आर्य हैं। और पीछेसे श्राये हुए प्रार्योंके बीच कुछ लोग बड़े आग्रहके साथ कहते