पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • इतिहास किन लोगोंका है। *

की कल्पनाएँ पीछेसे कर ली गई होगी। समय आन्ध्र, द्रविड़ पाण्ड्य आदि मान- यह भी माना गया है कि राक्षस लोग धारी लोग न थे । यदि वे उस समय अाकाश-मार्गसे भी पा जा सकते हैं। होते तो रामकी सहायता करते। जान भारती युद्ध के समय बहुत करके ये पड़ता है कि उस समय वानर और जातियाँ बहुत ही थोड़ी रह गई होगी। ऋक्ष प्रभृति लोग ही मद्रासकी तरफथे। अब तो वे सिर्फ अण्डमन टापूमें ही हैं। कुछ लोगोंका तो यह अनुमान है कि जान पड़ता है कि दोनों ही ओर एक एक पाणिनिके समयतक दक्षिणके लोगोंके राक्षसके होनेकी बात काल्पनिक होगी। नाम विशेष रीतिसे मालूम न थे। पर फिर भी यदि यह मान लिया जाय कि इसमें सन्देह नहीं कि महाभारत-कालमें भारती-युद्ध ऋग्वेद कालकेअनन्तर ही लगे अर्थात् सन् ईसवीसे पूर्व ३०० वर्षके हाथ हो गया, तो उस समय हिन्दु- लगभग हिन्दुस्थानके बिलकुल दक्षिणी स्थानमें कुछ राक्षस जातियोंका थोड़ा कोनेतकका पता आर्योको लग चुका था। बहुत अस्तित्व मान लेनेमें कोई हानि यह बात भी निर्विवाद है कि बौद्धों और नहीं । महाभारतमै अर्थात् सौतिके ' जैनोंसे भी पहले सनातन-धर्मी आर्म्य समय ये जातियाँ काल्पनिक हो गई थीं: दक्षिणकी ओर फैल गये थे। इसमें रत्तीभर और तब उनमें विलक्षण शक्तिका मान । भी मन्देह नहीं कि दक्षिणमें शिव और लिया जाना सहज ही है। विष्णुकी पूजा, बुद्धके पहले ही स्थापित हो गई थी: क्योंकि इस देशके जो बुद्ध- पाण्ड्य । 'कालीन वर्णन है, उनसे यही बात निष्पन्न पाण्डवोंकी ओरसे पागड्य गजाके होती है । इसके सिवा पाबमें सिकन्दर युद्ध करनेका वर्णन है। किन्तु पाण्ड्य बादशाहको दक्षिण प्रान्तकी जो जो बातें बिलकुल दक्षिणमें है और इसमें सन्देह बतलाई गई, उन्हें सिकन्दरके साथ आये ही है कि भारतीय युद्धके समय उनका हुए भूगोलवेत्ता इरादास्थेनिसने लिख अस्तित्व था भी या नहीं । दक्षिणमें रखा है। उसमें यह बात भी लिखी है विदर्भ पर्यन्त श्रायौंकी बस्ती भारती कि सिन्धुमुखसे लेकर कन्याकुमारीतक युद्ध के समय हो गई थी। किन्तु इससे किनारा कितने कोस लम्बा है । कनिङ्गहम भी यही सिद्ध होता है कि दक्षिणमें साहबने अपनी "हिन्दुस्थानका प्राचीन उनकी आबादी न हुई थी अथवा वहाँ- भूगोल" नामक पुस्तकमें लिखा है कि वाले ऐसे न थे कि आर्य लोगोंके युद्ध- इराटास्थेनिस्ने मद्रासके तरफ़का जो में शामिल हो सकते। रामने यदि लङ्का कच्चा हाल लिखा है,वह इतना सही है कि पर भी चढ़ाई की थी तो भारती युद्धके असल लम्बाईमें उससे दस-पाँच कोसका समय हिन्दुस्तानके दक्षिणी किनारे- ही फ़र्क पड़ता है। अर्थात् सौतिको अपने तकका पूरा पूरा पता मिल जानेमें कोई समयका समूचे हिन्दुस्थानका रत्ती रत्ती आश्चर्यकी बात नहीं। तथापि इस ओरके हाल मालम था और इसी आधार आर्योंके राज्य अभीतक दक्षिणमें न थे। पर उसने देशवर्णन तथा अन्य दिन्धि युद्धमें आन्ध्र और द्रविड़ वगैरहके जयके वर्णन किये हैं एवं देशों और सम्मिलित होनेका जो वर्णन है, वह नदियों के नाम लिखे हैं। सौतिके समय सौतिके समयका है। क्योंकि रामके युद्धके दक्षिणी किनारके पास पाएज्य लोग