पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१९१

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१६५ - - ॐ इतिहासः किन लोगोंका है। 8 युधिष्ठिरने इस सम्बन्धमे शान्ति पर्वके लोगोंके शरीर आदिका कैसा स्वरूप १०७ वें अध्यायमें स्वतन्त्र प्रश्न किया है। पाया जाता है। उसने पूछा है "इन गणोंका उत्कर्ष कैसे ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जिनसे होता है और इनमें फूट किस तरह होती मालूम होता है कि महाभारतके समय है ?" इनके जो वर्णन पाये जाते है हिन्दुस्तानके मनुष्य ऊँचे और खूब मज़- उनसे जान पड़ता है कि इन लोगोंमें बूत होते थे। मेगास्थिनीज़ने भी लिखा है कुछ मुखिया होते हैं। उनके उत्कर्षका कि-"समूचे एशियाखण्डवालोंमें हिन्दु- श्राधार ऐक्य ही है। स्तानी लोग खुब ऊँचे और मज़बूत होते नगणः करमशो मन्त्रं श्रीतमहन्ति भारत। हैं।" उसने इसका यह कारण बतलाया है गणमुख्यैस्तु संभूय कार्य गणहितं मिथः ॥ कि-"यहाँ खाने-पीनेकी सुविधा होनेके इस श्लोकसे जान पडता है कि उन कारण यहाँवाले मामूली ऊँचाईसे कुछ गणोंके सामान्यतः सर्व साधारणकी सभा अधिक ऊँचे होते हैं और इनके चेहरों पर होती थी; परन्तु गुप्त परामर्श गणोंके " तेजस्विता झलकती है।" हमारी समझमें मुखियोसे ही करनेका उपदेश दिया गया । यही कारण काफ़ी नहीं है। यह भी कारण है कि ये लोग एक नो आर्यवंशी थे और है । कहा गया है कि:-

उस समय इन लोगोंकी वैवाहिक स्थिति

जात्या च सदृशाः सर्वे कुलेन सदृशास्तथा। भी बहन उत्तम थी। विवाहके समय न चोद्योगेन बुद्धया रूपद्रव्येण वा पुनः॥ पति-पत्नीकी पूर्ण अवस्था होती थी और भेदाश्चैव प्रदानाञ्च भिद्यन्ते रिपुभिगणाः। विवाहसं प्रथम दोनोंकी ही ब्रह्मचर्य-रक्षा इससे प्रतीत होता है कि ये गण एक पर कड़ी निगाह रखनेकी श्राश्रम-व्यवस्था ही जातिके और एक ही कुलके होते थे और होनेके कारण सन्तान खूब सशक्त और केवल भेदसे ही जीते जाते थे। टीकाकार तेजस्वी होती थी। तीसरा कारण यह है नीलकण्ठको उनकी ठीक ठीक कल्पना कि भारती पार्योको, खासकर क्षत्रियोंको, न थी, इसलिये उसने उन्हें सिर्फ वीर-शारीरिक बल बढ़ानेका बहुत शौक होता समुदाय माना है। परन्तु यह बात ध्यान था और इस विषयकी कला उन दिनों देने योग्य है कि वे सदा एक जानिके खब चढ़ीबढ़ी हुई थी। चन्द्रवंशी क्षत्रियों- होते थे। को मल्लविद्याका बड़ा अभिमान था । भारती आर्योंका शारीरिक स्वरूप। भीम और जरासन्धके प्राणान्तक बाहु- युद्धका वर्णन सभापर्व में है। उससे यह खैर, भारती युद्ध मुख्यतः चन्द्रवंशी बात ध्यानमें आ जायगी किभारत-कालमें प्रार्यों में हुश्रा । हिन्दुस्तानमें आर्य अष-मल्लविद्या कहाँतक पूर्ण हो गई थी तक हैं और महाभारतके समय तो निस्स- (सभा० अ० २३)। इसके सिवा और भी न्देह थे। इसका प्रमाण शरीरके वर्णनसे अनेक मल्लोका वर्णन महाभारतमें है। भी मिलता है। सामान्यतः श्रास्का कृष्ण-बलराम दोनों ही खासे मल थे। कद ऊँचा,बदन गठीला और रङ्ग गोरा इन्होंने कंसके आश्रयमें रहनेवाले चारपूर होता है। नाक और आँख खुबसूरत और श्रादि कई मल्लोको पछाड़ा था। जरा- चेहरा-मोहरा उनका सुन्दर होता है। हम सन्धके यहाँ हंस और डिम्भक नामक इसी प्रकरणमें यह देखेंगे कि महाभारतमें दो मल्ल थे। ये दोनों और तीसरा जरा.