पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२०३

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  • वर्ण-व्यवस्था ।*

- माने गये। परन्तु चाण्डाल तो अस्पृश्य उतनी ही सराहना करती थी। वर्णसङ्कर माना गया है, यहाँतक कि बस्तीमें होना वड़ा पाप माना जाता था और लोग रहने लायक न समझकर यह बन्धन कर उससे बहुत घृणा करते थे। दिया गया कि वह बस्तीके बाहर ही रहे वर्णसङ्करका बर। (अनु० अ०४८)। ब्राह्मण ग्रन्थोंमें भी यह नियम देख पड़ता है। इससे पता चलता पायके कुछ लोगोंकी हालकी परि- है कि उसका प्रचार बहुत प्राचीन काल- स्थितिसे मालूम होता है कि वर्णसङ्करके से रहा होगा। भयङ्कर प्ररिणाम केवल कल्पना न थे ___ यह धारणा बहुत प्राचीन कालसे किन्तु प्रत्यक्ष थे। कुछ लोग समझते हैं चली आ रही है कि उच्च वर्णकी बेटियोंके कि-"ब्राह्मण स्त्रीसे उत्पन्न श द्रके पुत्रको नीचेके वर्गों की विशेषतः शुद्रोंको घर- चाण्डाल माननेकी कल्पना केवल धर्म- वाली होनेसे भयङ्कर हानि होती है। शास्त्रकी है, वास्तवमें ऐसी सन्तान यह धारणा स्वाभाविक है । जहाँ दो वर्णी- चाण्डाल नहीं मानी गई है: चाण्डाल तो में बहुत फर्क होता है अर्थात् एक तो होता | यहाँके मूलनिवासियोंमेंसे बहुत ही नीच है गोरा और दूसरा होता है काला, और और बुरी स्थितिके लोग हैं।" परन्तु शीर्ष- जब उनकी सभ्यतामें भी बहुत ही अन्तर मापनशास्त्रसे अब यह बात निश्चित हो होता है अर्थात् एक तो होता है अत्यन्त गई है कि पञ्जाबकी अस्पृश्य जातियों में सुधरा हुआ और दूसरा बिलकुल चूहड़ जातिके जो लोग हैं उनमें दरअसल अशानमें डूबा तथा बहुत ही अमङ्गल आर्य जातिका मिश्रण है । सम्भव है कि रीतिसे रहनेवाला, वहाँ ऐसे वर्णीका चागडालोको यह जाति, ऊपर लिखी मिश्रण विशेषतः प्रतिलोम मिश्रण रीतिसे, उत्पन्न हो गई हो । चूहड़ोंके उदा- (अर्थात् उच्च वर्णोकी स्त्री और नीच हरणसे व्यक्त होगा कि वर्णसंकरके डरसे वर्ण के पुरुषका मिश्रण) निन्द्य समझा भिन्न भिन्न जातियाँ किस प्रकार उत्पन्न जाय तो कोई आश्चर्य नहीं । ब्राह्मण- हो गई । प्रतिलोम विवाहके सम्बन्धमें कालसे लेकर महाभारततक वर्णसङ्करकी वर्णसङ्करका जो भय दिखाया गया है, जो अत्यन्त निन्दा की गई है उसका यही उसके कारण आगे ऐसे विवाहोंका होना कारण है । यह समझा जाता था कि वर्ण- रुक गया होगा। यही नहीं बल्कि अनु- सङ्करसे चाराडाल सरीखी नीच सन्तान लोम विवाहतक धीरे धीरे घट गये. होती है। इसका कारण यह है कि दो वर्णों- और अनुलोम विवाहसे उत्पन्न नई में सभ्यताका स्वरूप अत्यन्त भिन्न था। जातियोंने अपने में ही विवाह करनेका भगवद्गीतामें भी वर्णसङ्करका बहुत भय नियम कायम कर लिया। दिखाया गया है। उसमें सङ्कर होनेका वर्णसङ्करकी आशङ्कासे डरकर चार दुष्परिणाम यह बतलाया है कि "सङ्करो वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने नरकायैव कुलमानां कुलस्य च ।" यह भी अपने वर्णमें ही विवाह करने लगे। इस समझा जाता था कि वर्णसङ्कर न होने सिद्धान्त पर यह श्राक्षेप हो सकता है देनेकी फिक्र राजाको भी रखनी चाहिये। कि ऐसा करने में ब्राह्मणोंने बड़ा अन्याय वर्णसङ्कर न होने देनेके लिये राजा लोग किया। ब्राह्मणों और शूद्रोंका विवाह जितना परिश्रम करते थे, प्रजा उनको सम्बन्ध होने पर जो मन्नान हो, उसका २३