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महाभारतमीमांसा

8 महाभारतमीमांसा माँग यह थी कि-"हम पाँच भाईयोको पेशेमें और लोगोंका प्रवेश बहुत कम है। और नहीं नो पाँच गाँव तो दो।" इसमें हजारों वर्षके आनुवंशिक संस्कारोंसे उस सहज स्वभावका पूर्ण प्रतिबिम्ब : वैश्य लोग इस रोज़गारके काममें बहुत आ गया है। राज्य करना क्षत्रियका सहज ही सिद्धहस्त हो गये हैं। व्यापारमें उनके व्यवसाय और उद्योग था, क्योंकि उन्हें न साथ स्पर्धा करने में और वर्ण समर्थ नहीं। भिक्षा माँगनी थी और न खेती करनी · खैर: इस विचारको छोड़ दीजिये । वैश्य थी। दोनों बातोंमें उन्हें पोछापन अँचता अपने मुख्य व्यवसाय वाणिज्यको प्राचीन था। तब, बिलकुल ग़रीबीमें रहनेवालो- कालसे लेकर महाभारतके समयतक के लिये सिपाहगिरी थी और जो लोग करते थे । पहले बहुधा वैश्य जातिमें अच्छी स्थितिके थे, उनका कहीं न कहीं बहुत लोग शामिल थे, परन्तु अब यह राज्य होना चाहिये । महाभारतके समय- जाति सङ्कचित हो गई है। खेती करने तक उन्होंने राज्य करनेके अपने हक़की वाली अनेक वैश्य जातियाँ शूद्रोंमें गिनी भली भाँति रक्षा की थी । इसमें ब्राह्मण जाने लगीं । इसका कारण यह है कि या वैश्य प्रविष्ट न हुए थे। वेदाध्ययन और यजन, ये दो अधिकार ब्राह्मण-क्षत्रियकी तरह वैश्योंको भी प्राप्त वैश्योंका काम। थे: परन्तु उन लोगोंने इनकी रक्षा नहीं की। क्षत्रियों में वेदाध्ययन कुछ तो रहा अब वैश्योंके साहजिक व्यवसाय होगा, किन्तु वैश्यों में वह बहुत कुछ घट पर विचार किया जाता है। भगवद्गीतामें गया होगा: फिर भी वह बिलकुल ही वैश्यका मुख्य पेशा कृषि, गोरक्षा और लुप्त न हो गया था । व्रजके गोपीगोप वाणिज्य कहा गया है । महाभारतके वैश्य थे और भागवतमें भी गोपोंके यज्ञ शान्तिपर्वमें भी यही बात लिखी है। पूर्व । करनेका वर्णन है । इसके सिवा खेतीके समयमें वैश्योंका रोज़गार खेती था और रोज़गारमें रात-दिन शद्रोंका साथ रहने. गोरक्षा अर्थात ग्वालका पेशा भी यही के कारण भी वेदाध्ययनकी प्रवत्ति वैश्यों में लोग करते थे । परिस्थिति बहुत पुराने घट गई होगी। ऐसे ऐसे कारणोंसे कर्ज समयकी है। अाजकलके वैश्य तो इन वैश्य जातियाँ अब शद्रोंमें गिनी जान दो व्यवसायोमसे कोई रोजगार नहीं लगी हैं। पर महाभारतके समय वेशद्र करते। गोरक्षाका व्यवसाय कई शूद्र न मानी गई होगी । उदाहरणार्थ मूलमें जातियाँ करनी हैं और खेती भी शुद्र, जाट होंगे खेती करनेवाले वैश्य, और गूजर राजपूत और ब्राह्मण आदिके हाथमें है। होंगे गोरक्षाका पेशा करनेवाले वैश्य: किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि प्राचीन क्योंकि ये लोग सूरत शकलमें बिलकुल कालमें ये दोनों रोज़गार आर्यवर्णी वैश्य आर्य है। शीर्षमापनशास्त्रके पण्डितोको करते थे। सौतिके समय वह परिस्थिति भी इसमें आपत्ति नहीं है। महाभारतके ये बदल गई होगी, क्योंकि अगले विवेचनसं वर्णन प्रत्यक्ष स्थिति-द्योतक हैं, किंवा स्पष्ट होगा कि उस समय शूद्रोंकी स्थिति परिगणित होते होते आगे आते गये हैं- बहुत कुछ सुधरी हुई थी। वैश्य तो सिर्फ यह कहना कठिन है । तथापि यह तो पाणिज्य करते हैं। यह पेशा वे प्राचीन स्पष्ट है कि पूर्व कालमें कृषि और गोरक्षा कालसे अबतक करते आ रहे हैं । इस करना वेश्योंका पेशा था।