पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२३९

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  • शिक्षा-पद्धति

२१३ - उपयोग राजपुत्रों तथा योद्धाओंको धनु- । योग्यता भी होनी ही चाहिये । यह शिक्षा विद्या सिखानेमें होता था। सभा पर्वके क्षत्रिय कुमागेको दी जाती थी और कश्चिदध्यायमें मारदने यह प्रश्न किया है- ब्राह्मण लोग शिक्षक थे। यद्यपि यह सही ___ कञ्चित् कारणिका धर्म सर्वशास्त्रषु है कि मन्त्र आदिकी विधि अस्त्रोंमें कोविदाः । कारयन्ति कुमारांश्च योध- होती है और इसके लिए यद्यपि यह मुख्यांश्च सर्वशः॥ मान लिया कि ब्राह्मण शिक्षक रहे होंगे, इसमें कारणिक शब्द विशेष अर्थमैं तथापि इन बातोंके अतिरिक्त ब्राह्मण पाया है: यहाँ उसका उपयोग सरकारी लोग मानवीयद्ध-विद्याकी शिक्षा देने में भी शिक्षकके अर्थमें किया गया है । टीका- स्वयं योग्य थे। और उसके अनुसार वे कारने कारयन्ति का अर्थ भी शिक्ष- शिक्षा देते भी थे, क्योंकि पढ़ाना सिख- यन्ति किया है । अर्थात्, योद्धाश्रोको लाना तो उनका काम हो था और शिक्षा भली भाँति सिखलानेके लिये सरकारी देनेकी जिम्मेदारी उन्होंने सिर-आँखों पर शिक्षक नियुक्त रहते होंगे । यहाँ पर ऐसे ले रखी थी। विद्वान् श्राचार्योकी बहुत ही अधिक व्यवसायकी शिक्षा। प्रशंसा की गई है। ___ कञ्चिन्सहर्मूर्खाणामेकं क्रीणामि साधारण लोगोंको रोज़गारकी शिक्षा पण्डितम् । पगिडता हार्थकच्छंषु कुर्यान्निः बहुधा उनके पेशके-आँखों देखे-प्रत्यक्ष श्रेयसं परम् ॥ अनुभवसे ही मिलती रही होगी। तथापि ___यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि शिक्षाकी विशेष वातं सिखलानेके लिये क्षत्रियोंकी मुख्य शिक्षा युद्धकला-सम्बन्धी ब्राह्मण ही तैयार होते होंगे । यह वर्णन है थी। जब द्रोणने धृतराएके दुर्योधन आदि | कि भिन्न भिन्न पेशावालों को ब्राह्मण लोग सौ पुत्रोंकी और पाँच पागडवोंकी परीक्षा जीविकाके उपाय सिग्खलावे, कृषि,गोरक्षा दिलवाई, तब उन्हें क्या क्या सिखलाया और वाणिज्यका शास्त्र 'वार्ता' नामसे गया था, इसका वर्णन आदि पर्वमें प्रसिद्ध था: सो इस शास्त्रके शिक्षक भी किया ही गया है । सबमें मुख्य धनुष्- ब्राह्मण ही थे । और नारदने युधिष्ठिरसे बाण, उससे ज़रा ही नीचे गदा और प्रश्न किया कि यह शास्त्र ठीक तौर पर उसके बाद ढाल-तलवारका नम्बर था। सिखलाया जाता है या नहीं। भिन्न भिन्न इसी प्रकार घोड़े और हाथी पर तथा विद्याये, ज्योतिष और वैद्यक आदि रथमें बैठकर भिन्न भिन्न शस्त्रोंसे युद्ध बहुधा ब्राह्मण ही पढ़तं और ब्राह्मण ही करना आदि कौशल उन गजकुमारोंने पढ़ाते थे। सारी विद्यायें पढ़नेके लिये दिखलाया था । ये सब विद्याएँ गुरुन उत्तेजन देना राजाका काम है। प्राचीन- तो सिखलाई ही थीं, परन्तु यह भी कालमें ऐसी ही धारणा थी। और उत्ते. दिखलाया है कि गुरुकी शिक्षाके साथ जन देनेकी गति यह थी कि भिन्न भिन्न ही साथ प्रत्येक शिष्यकी क्रिया अथवा विषयोंमें परीक्षा लेकर जो लोग उन योग्या यानी व्यासङ्ग भी स्वतन्त्र है । विद्याओं में प्रवीण निकलें, उन्हें राजा अर्जनका गततकमधनषकी योग्या करन-दक्षिणा दे। वर्तमान कालकी तरह प्राची का वर्णन है। विद्या-व्यास और गुरुकी कालमें भी यही परिपारी थी । पहले कृपाक साथ साथ तीसरी ईश्वरदस : पेशवाओंके समयमें और आजकल कुछ