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महाभारतमीमांसा
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थीं: उस समय भीष्म उन्हें हरण कर नेयं शक्या त्वया नेतुं अविजित्य महारथान् । लाये और दोका विवाह विचित्रवीर्य के धर्मचत्रस्य पैराणमवेक्षख जयद्रथ । साथ कर दिया। इसमें विशेष ध्यान देने, 'महारथियों (पाण्डवों) को जीते बिना योग्य बात यह है कि जब अम्बाने भीष्म-तुम द्रौपदीको नहीं ले जा सकते। पुरा- से कह दिया कि मैंने शाल्व गजाको तन कालसे क्षत्रियों का जो धर्म चला मनसे घर लिया है, तब भीष्मने उसे लौट पा रहा है, उस पर ध्यान दो।' (वन पर्व जाने दिया। इससे सिद्ध होता है कि अ० २१८) इससे प्रतीत होता है कि जिस कन्याने मनसे किसी और को वर क्षत्रियोंका पुरातन कालसे प्रचलित धर्म लिया हो उस कन्याका प्रतिग्रह करनेमें, यह रहा होगा कि दूसरे क्षत्रियको जीत- भारतके समय, आर्य क्षत्रियोंको अड़चन कर उसकी विवाहिता स्त्रीतक हरण की जान पड़ती थी। यद्यपि ऐसा है तथापि जा सकती है । अनेक प्रमाणांसे यह विवाहिता स्त्रीतक ज़बर्दस्ती हरण कर ! धारणा दृढ़ होती है कि प्राचीन कालमें इस ले भागनेके उदाहरण पूर्व समयमें देख तरहकी रीति रही होगी। महाभारतके पड़ते हैं। इस सम्बन्धमें सीताका ही अनन्तरके कुछ ग्रन्थोसे जान पड़ता उदाहरण पर्याप्त है। इस गीतिसे विवा-है कि राजाओंकी स्त्रियाँ, जीतनेवाले हिता स्त्रीको जीत ले जाने पर गक्षसोंकी गजाके घर, दासीकी भाँति काममें लाई रीतिके अनुसार, उस स्त्रीके ऊपर जीतने-जाती थीं । विशेषतः जो स्त्रियाँ पट- वालेका अधिकार होता था: और यदि रानियाँ न होती थी, उन्हें जीतनेवाले वह राजी न होती तो उसे एक वर्षकी गजाकी स्त्रियों में सम्मिलित करने में बहुधा मियाद दी जाती थी । शान्ति पर्वके ध्व : कोई बाधा न रही होगी । वैर: स्मृतियों- अध्यायमें कहा गया है कि पराक्रमले में उल्लेख है कि गक्षस विवाह क्षत्रियों- हरण कर लाई हुई कन्यासे एक वर्षतक के लिए विशेष रूपसे योग्य है। आजकल विवाहके सम्बन्धमें पूछताछ न की जाय। भी क्षत्रियों में और उनके नीचेवाली मालूम पड़ता है कि वह मियाद गुज़र जातियों में गक्षम विवाहका थोड़ा बहुत जाने पर उसके साथ ज़बर्दस्ती विवाह अवशिष्ट अंश देख पड़ता है : यानी विवाह- कर लिया जाता था । परन्तु धर्मके शाता के अवसर पर दुलहके हाथमें कटार या क्षत्रिय उस खीका भी प्रतिग्रह करना । छुरी रखनेकी गति इन जातियों में अब- स्वीकार न करते थे जिसने मनसे तक है। किसी औरको वर लिया हो । भीष्मके ये भिन्न भिन्न विवाह पहले भिन्न भिन्न उल्लिखित उदाहरणसे यह बात व्यक्त ! जातियों में प्रचलित थे और ब्राह्म, क्षात्र, होती है । वन पर्वमें जयद्रथने द्रौपदीका गान्धर्व, आसुर और राक्षस उनके नाम हरण किया; उससे भी प्रकट है कि कुछ थे। तथापि ये सब भारती आर्यों में, एक क्षत्रिय लोग विवाहित स्त्रीको भी ज़ब- हो समयमें, जारी थे और उन सबका दस्ती पकड़ ले जाते थे । परन्तु उसके रूपान्तर धीरे धीरे ब्राह्म-विवाहमें होता प्राम-बन्धुओको जीतनेकी आवश्यकता गया । राक्षस-विवाहके द्वारा यद्यपि थी। द्रौपदीने उस समय धौम्य ऋषिकी कन्या हरण की गई हो, तथापि अन्तमें प्रार्थना की: तब धौम्यने जयद्रथसे जो पनि-पत्नीका विवाह बहुधा ब्राह्मविधिसे वाक्य कहा वह भ्यान देने योग्य है। किया जाना था। महाभारतके अनेक