पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२६३

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विवाह-संस्था । २३७ अब भी है। (७) परन्तु पति-पत्नीका दोही, अथवा दोनोंका मिश्रण प्रचलित समागम विवाहके ही दिन अथवा है। (११) महाभारतके समयतक ब्राह्मण विवाहके तीसरे दिन होता था, अर्थात् और क्षत्रिय अपनेसे नीचके वर्णकी बेटी विवाहके समय कन्या उपभोगके लायक ले लिया करते थे। इस समय यह रीति या प्रौढ़ होती थी। (८) इससे प्रकट | सर्वथा बन्द है। यह दूसरा महत्त्वपूर्ण है कि पूर्व समयमें विवाह बचपनमें बिल- अन्तर है। इस प्रकार महाभारत-कालीन कुल ही न होता था। बहुधा पुरुषोंका और वर्तमान-कालीन विवाह-संस्थाके इक्कीस वर्षकी अवस्थासे लेकर तीस सम्बन्धमें भारतीय प्रायोंके समाजकी वर्षकी अवस्थातक और स्त्रियोका पन्द्रह- परिस्थिति विभिन्न थी। सोलह वर्ष की अवस्थाके लगभग अर्थात् चढ़ती उम्रमें ही विवाह होता था। इस पति-पत्नीका सम्बन्ध । समय राजाओं और क्षत्रियोंके सिवा यह अब देखना चाहिए कि भारती-समय. रीति और लोगोंमें नहीं है । (हर्षचरित्से में पति-पत्नीका कैमा सम्बन्ध था। जिन अनुमान होता है कि यह रीनि बाण : दिनों स्त्रियाँ विवाह के समय नरुण होती कविके अनन्तर बदल गई होगी ।) (8) इस थीं और जिन दिनों उन्हें पतिको वरण कारण, उस ज़माने में विवाहके समय करनेका अधिकार था, अथवा उन्हें स्त्रियाँ प्रौढ़ होती थीं और इसीसे अप्रौढ़ स्त्रियोंके लिये शुल्कम बड़ी बड़ी रकमें देनी तथा अनुपभुक्त विधवाओंका प्रश्न ही पड़ती थी, उस युगमें पत्नीका अधिकार उपस्थित म हुआ था । आजकलकी परिवार में बढ़ा रहा होगा। आजकल तो और महाभारतकालीन स्थितिके बीच कन्या-दान करनेके अतिरिक्त ऊपरसे यह बड़ा और महत्व-पूर्ण अन्तर है। दक्षिणा ( दहेज़ ) भी खासी देनी पड़ती (१०) प्राचीन कालमें भिन्न भिन्न लोगोंमें : है: तब पत्नीकाबहुत कुछ आदर अधिकार तरह तरहके विवाह प्रचलित थे, और उन घट जानेमें आश्चर्य ही कौनसा है। महा- लोगोंके कारण ही ब्राह्म, क्षात्र, गान्धर्व, · भारतके समय गृहस्थीमें स्त्रियोंको विशेष आसुर और राक्षस-ये विवाहके पाँच : स्वतन्त्रता प्राप्त थी और कुटुम्बमें उनका भेद भारतीय आर्योम, भारतीय-कालमें आदर भी खासा था । द्रौपदीका ही उदा- प्रचलित थे। उसमें ब्राह्म-विधि अर्थात हरण लीजिये । विवाहके समय वह बड़ी दान-विधि श्रेष्ठ मानी जाती थी। आज- थी। स्वयम्वरके अवसर पर वह निर्भयता- कल भी बहुत कुछ वही बात है। क्षत्रियों से चली आई। कर्ण जब लन्य वेधनेको में राक्षस विवाह अर्थात् ज़बर्दस्ती कन्या धनुष उठाने लगा तो उसने करारा उत्तर । हरण करनेकी रस्म और क्षात्र विवाह दिया कि-"मैं सूतसे विवाह न करूंगी।" यानी शरताकी बाज़ी जीतकर कन्याको ब्राह्मणरूपी अर्जुनके साथ वह, प्रण जीते वरनेकी रीति तथा गान्धर्व विवाह अर्थात् जाने पर, आनन्दसे चली गई। फिर चूत- केवल प्रेमसे ही वरण कर लेनकी रीति के अवसर पर उसने अपना धैर्य डिगने बहुत थी।यूनानी इतिहासकारोंके प्रमाणों- नहीं दिया। उसे धर्मशास्त्रका भी अच्छा से सिद्ध है कि महाभारतके समय भी परिचय था और सभासे उसने ऐसा प्रश्न यही परिपाटी थी। पर आजकल ये तीनों किया कि उसका उनर भोप्मसे भी देते गतियाँ लुप्त है। आजकल ब्राह्म और आसुर न बना। व्यासजाने उसके लिये 'ब्रह्मा-