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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

कल प्रवाद सदैव रहता है। और इस देख पड़ती है। किंबहुना यूनानी इतिहास- तरहके प्रवाद बहुधा सच नहीं निकलते। कारोने भी इस सम्बन्धका प्रमाण लिख यूनानी इतिहास-लेखकोका लिखा हुआ | छोड़ा है । पञ्जाबके ही कुछ लोगोंके यह प्रवाद भी इसी श्रेणीका होगा। कर्ण सम्बन्धमें उन्होंने लिखा है कि इनकी और शल्यके बीच जिस निन्दा-प्रचुर स्त्रियाँ पतिकी चितापर जलकर देह त्याग (पूर्वोल्लिखित) भाषण होनेका वर्णन महा- देती हैं। यूनानी इतिहासकारोंको इस भारतकारने कर्णपर्व में किया है, उसमें भी बातका बड़ा आश्चर्य होता था कि इस कर्णने मद्र-स्त्रियोंकी और पञ्जाबकी अन्य तरह देह नजनेका मनोधैर्य इन स्त्रियोंको बाहिक त्रियोंकी इसी तरह निन्दा की कैसे हो जाता है। किन्तु उन्होंने यह भी है। इसमें सन्देह नहीं कि इस निन्दामें लिखा है कि ऐसा देह-त्याग वे अपनी अतिशयोक्ति है। तथापि मृलमें कुछ न खुशीसे ही करती हैं। यूनानी फौजमें कुछ सत्य होनेसे महाभारतके समय केटीयस् नामक एक भारती क्षत्रिय कदाचित् पञ्जाबमें यह हाल रहा हो: सेनापति था। उसके मरने पर, सती और इसी बिरते पर यूनानियोको प्रति- होनेके लिये, उसकी दोनों स्त्रियों में झगड़ा कुल मतकी कुछ जड़-बुनियाद हो । किन्तु हुना। अन्तमें बड़ी स्त्रीको, गर्भवती हमारी समझमें यह भी पहले ही सिद्धान्त- होनेके कारण, सती न होने दिया गया: का एक नमूना है। अर्थात् कर्णके मनमें और छोटी स्त्री इस सम्मानको प्राप्त करके पजाबकी स्त्रियोंके विषयमें जो अोछा अानन्दसे सती हो गई । यह वर्णन यूना- विचार था वह उसी नासमझीका परि- नियोंने ही किया है। इससे प्रकट है कि बाम था जो कि प्रत्येक समाजमें हमरे सिकन्दरसे पहले अर्थात महाभारत-कालके समाजके सम्बन्धमें होती है। अर्थात पूर्षसे ही हिन्दुस्थानमें सतीकी प्रथा थी: कर्णपर्यवाले कर्णके भाषणसे अथवा और इसके विषयमें अत्यन्त पवित्रताकी खूनानी इतिहासकारोंके वर्णनसे भारतीय | कल्पना हुए बिना अपनी इच्छासे सती आर्य स्त्रियोंके पातिव्रतके उच्च स्वरूपमें, हो जाना सम्भव नहीं। महाभारतमें भी जो कि महाभारनमें देख पड़ता है, कोई पाण्डुके साथ माद्रीके सती हो जानेका कमी नहीं पाती। वर्णन है । वह माद्री भी मद्र देशकी पना- सतीकी प्रथा। बिन हीथी। इन्द्रप्रस्थमें श्रीकृष्णकी कितनी ही स्त्रियोंके सती हो जानेका वर्णन महा- यदि इस उच्च स्वरूपकी कुछ और : भारतमें है। भारतीय युद्ध हो चुकने पर मिल साक्षी आवश्यक हो, तो वह सती- : दुर्योधनकी स्त्रियोंके सती होनेका अथवा की प्रथा है। सतीकी प्रथा भारती आर्योको : दूसरे राजाओंकी स्त्रियोंके सती होनेका छोड़ और किसी जातिमें प्रचलित नहीं वर्णन महाभारतमें नहीं है। किन्तु महा- देख पड़ती । कमसे कम उसके उदा- भारसमें तो दुर्योधनकी स्त्रीका नामतक हरण और लोगों में बहुत ही थोडे । 'सही फिर उसके सती होनेकी बात तो सतीके धैर्य के लिये पातिव्रत्यकी अत्यन्त दूर है। अन्याय राजाओंकी स्त्रियोंके भी उदात्त कल्पना ही आधार है। हिन्दु- नाम नहीं, और इस कारण उनके सम्बन्ध- स्तानमें सतीकी प्रथा प्राचीन कालसे में कुछ भी उल्लेख नहीं है। तात्पर्य, यह लेकर महाभारतके समयतक प्रचलित उल्लेख न रहनेसे कुछ भी प्रतिकूल अनु.