पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९१

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  • सामाजिक परिलिति-वन्त्र । *

२६५ हैं। प्राचीन कालमें स्त्रियाँ जब कहीं पड़ता है। सारी बातों पर विचार करते बाहर जाती तब-आजकलकी तरह- हुए हमारा यह मत है कि महाभारतके उत्तरीयकी आवश्यकता होती थी। समय भारती आर्य स्त्रियाँ चोली न धृतराष्ट्रके अन्तःपुरसे द्यतसभामें पहनती थीं। द्रौपदीके पकड़ बुलानेका जो वर्णन है। होमरने प्राचीन कालके यूनानी खी. उससे उल्लिखित अनुमान सबल होते हैं। पुरुषोंकी जिस पोशाकका वर्णन किया उसने बार बार विनती करके कहा-“मैं है, वह अनेक अंशोंमें उल्लिखित भारती एकवस्त्रा हूँ: मुझे सभाम मत ले चलो।" ' आर्योंकी पोशाकके सामान ही है। होमर- इस समय वह रजखला भी थी। तब यह वर्णित स्त्रियोंकी पोशाक है-"सिरसे बात निर्विवाद देख पड़ती है कि बाहर ओढ़ा हुआ बुर्का और कमरके आस पास जाते समय ही उत्तरीय लेनेकी चाल लपेटा हुआ एक वस्त्र । यह कपड़ा थी। यद्यपि वह एकवस्त्रा थी तथापि हिन्दुस्तानी साड़ीकी तरह एक लम्बासा, उसे ग्वींचकर सभामें लाया गया और घरमें बुना हुआ ऊनी वस्त्र था और वह वहाँ कर्णने वह एक वस्त्र भी स्त्रींच लेने- , न तो कहीं काटा जाता था और न सिया के लिये दुःशासनसे कहा: और दुःशा- जाता था। यह कपड़ा कमरके प्रास- सनने ऐसा करनेकी चेष्टा की। इमसे पास कमरपट्टेसे कसा रहता था और अनुमान होता है कि पहननेका वस्त्र इस वस्त्रको कन्धे पर एक गाँठसे स्थिर ऐसा पहना जाता था कि खीचकर कर दिया जाता था। दोनों हाथ और निकाला जा सके । आजकल उत्तरी भुजाएँ बाहर निकली रहती थी । हिन्दुस्तानमें स्त्रियोंका जैसा लहँगा होता पुरुपोंकी पोशाकमें भी दो हो वस्त्र थे। है, वैसा न था। यहाँ पर अब यह प्रश्न हाँ, उनकी कमरके आसपास पट्टा न होता है कि भारती आर्य स्त्रियां महा. : था, किंतु गेमन लोगोंकी तरह शरीर पर भारतके समय चोली (अंगिया) पहनती पड़ा हुश्रा पल्लेदार लम्बा टोगा था।" थी या नहीं: क्योंकि बिना सिये चोली बन इस वर्णनसे ज्ञात होता है कि प्राचीन ही नहीं सकती। हमारा अनुमान है कि आर्य स्त्री-पुरुषोंकी पोशाक बहुत कुछ महाभारतके समय चोली पहननेकी गति एकसी ही थी। स्त्रियोंका बुर्का मानों स्त्रियों में न थी। यह रीति, इस समय, हमारे यहाँका उत्तरीय है। इस उत्तरीय- सिर्फ मदरासी स्त्रियोंमें रह गई से स्त्रियाँ अपना सिर, पीठ, भुजाएँ है। परन्तु इस अनुमानके भी विरुद्ध अथवा पडीतक सारा शरीर ढाँके रहती कंचुकी शब्द बहुत पुराना माना जा थी। शोक करते समय अथवा कामके सकता है । तथापि कंचुकी तो राज-दर- समय यूनानी स्त्रियाँ, होमरकृत वर्णनके बारका एक विशेष अधिकारी है और वह अनुसार, अपना उत्तरीय अलग रख देती भी प्राचीन कालमें नहीं देख पड़ता। थीं। इसी तरह रामायणमें वर्णन है कि वह एक कंचुक अर्थात् सिला हुआ कोट सीताने भी अपना उत्तरीय सुग्रीव आदि (या अङ्गा) पहने रहता था, इसी कारण वानरोके बीच डाल दिया था। तात्पर्य उसकी संज्ञा कंचुकी हो गई थी और यह कि भारती आर्यों और यूनानियों में भी यह कंचुकी भी पारसीक बादशाहोंके खियोंका उत्तरीय जब चाहे तब उतारने रवाजके अनुकरमासे आया हुश्रा जान और प्रोदने लायक था। इसके सिवा यह