पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३२७

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8 राजकीय परिस्थिति । * ३०१ शाहतका मुल्क किसी रीतिसे बढ़ाया लोगों पर राजाका अधिकार क्यों चलता नहीं जाता था; और न सम्राट्के अधि- है ? अन्य मनुष्योंके समान हो राजाके कार एकतन्त्र होते थे । हमारा यह मत दो हाथ और दो नेत्र हैं और अन्य मनु- है कि महाभारतमें वर्णित जरासंधका| व्योंकी अपेक्षा उसकी बुद्धिमें भी कुछ प्राचीन चित्र, प्राचीन समयके वर्णनों विशेषता नहीं।" इस पर भीष्मने उत्तर और प्राचीन काल्पनाओं के अनुसार, ' दिया कि पहले कृतयुगमें राजा थे ही रँगा गया है। नहीं : उस समय सब लोग स्वतन्त्र थे । महाभारतकालीन साम्राज्य और वे अपनी स्वतन्त्र इच्छासे धर्मका प्रति- पालन करते थे। परन्तु आगे काम, क्रोध, राजसत्ता। लोभ आदिके ज़ोरसे ज्ञानका लोप और महाभारतके समय राजसत्ता पूर्ण धर्मका नाश हो गया । कर्तव्य-अकर्तव्यको रीतिसे अनियन्त्रित हो चुकी थी और जानना कठिन हो गया । वेद भी नष्ट हो सब जगह राज्य भी स्थापित हो चुके थे। गये । यज्ञादि द्वारा म्वर्गलोकसे वृष्टिका प्रजासत्ताक राजव्यवस्था और सर्व- होना बन्द हो गया। तब सब देवतामोने साधारणकी सभाकं जो वर्णन कहीं कहीं ब्रह्माकी प्रार्थना की । ब्रह्माने अपनी बुद्धि- पाये जाते हैं, उन्हें प्राचीन समझना से एक लाख अध्यायोंके एक ग्रन्थका चाहिए । महाभारतके शांति पर्व में जो निर्माण किया। उसमें धर्म, अर्थ और राजव्यवस्था वर्णित है, वह पूर्ण अनिय कामका वर्णन किया गया है । इसके त्रित स्वरूपकी है । उस समयके लोग अतिरिक्त उसमें प्रजापालनकी विद्या भी यह मानते थे कि राजाकी इच्छा पर विस्तारपूर्वक बतलाई गई है । साम, मेश्वरकी इच्छाकं समान बलवान है और दान, दण्ड, भेद आदिका भी वर्णन उसमें राजाने अपने अधिकार देवताओम प्राप्त है, और लोगोंको दण्ड देनकी रीति भी किये हैं। प्रजा, राजाकी श्राज्ञाको, उसमें बतलाई गई है। यह ग्रन्थ ब्रह्मान देवताकी प्राज्ञाके समान मान । गजाके शङ्करको सिखलाया: शङ्करने इन्द्रको, और विरुद्ध कोई काम या बलवा न किया इन्द्रने बृहस्पतिको सिखलाया। बृहस्पति- जाय । राजाके शरीरको किसी तरहकी ने ३००० अध्यायों में उमको संक्षिप्त करके हानि न पहुँचाई जाय । अनेक देवताओंके जनतामें प्रसिद्ध किया। वहीं बृहस्पति- योगसे गजाकी देह बनी है और स्वयं नीति है । शुक्रने फिर उसका १००० भगवान विष्णु राजाकी देहमें प्रविष्ट अध्यायों में संक्षेप किया। प्रजापतिने यह हैं । उस समय यह एक बड़ा जटिल ग्रन्थ पृथ्वीके पहले गजा अनङ्गको दिया प्रश्न था कि राजाका अधिकार कहाँसे और उससे कहा कि इस शास्त्रके अनु- और कैसे उत्पन्न हुआ। तत्ववेत्ता- सार गज-काज कगे। जब उसके नाती ओको इसके सम्बन्धमें बड़ी कठिनाई हो वेनने इन नियमोका उल्लङ्घन किया और रही थी। उन्होंने एक विशिष्ट रीतिसे वह अपनी प्रजाको कष्ट देने लगा, तब इस प्रश्नको हल करनेका प्रयत्न किया है। ऋषियोंने उसे मार डाला और उसकी शान्ति पर्वमें राजधर्म-भागके प्रारम्भमें ही जाँघसं पृथु नामका गजा उत्पन्न किया। युधिष्ठिरने भीष्मसे यह प्रश्न किया है- उसे ब्राह्मणों और देवताओने कहा- "राजन' शब्द कैसे उत्पन्न हुआ और अन्य 'गग और उपन्याग करके, सब लोगा-