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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

के विषयमें सम-भाव रखकर. इस शास्त्रकार न था। उन्हें घटाने या बढ़ानेका भी के अनुसार पृथ्वीका राज्य कर । यह भी अधिकार राजाको न था। जिस प्रकार अभिवचन दे, कि ब्राह्मणोंको दण्ड नहीं राजाके अधिकार परमेश्वरसे प्राप्त हुए दूंगा और वर्ण-सङ्कर न होने दूंगा।" : थे, उसी प्रकार राज्यशासनके नियम भी तब पृथुने वैसा वचन दिया और पृथ्वी- परमेश्वरसे निर्मित होकर प्राप्त हुए थे। का राज्य न्यायसे किया। उसने पृथ्वी पर- अतएव उनका अनादर करनेका, उन्हें से पत्थर अलग कर दिये। इससे पृथ्वी बदलनेका या नये नियमोंको जारी करने- पर सब प्रकारके शस्य और वनस्पतियाँ का अधिकार राजा लोगोंको न था । पैदा होने लगी । उसने प्रजाका रञ्जन प्राचीन भारती आर्य तत्त्ववेत्ताओंने किया जिससे उस 'राजा' संज्ञा प्राप्त राजाओंके अनियन्त्रित अधिकार या हुई। विष्णुने तपसे उसके शरीरमें प्रवेश राजसत्ताको इस रीतिसे नियन्त्रित कर किया और यह नियम बना दिया कि देनेकी व्यवस्था की थी। उसकी आशाका कोई उल्लङ्घन न करे। प्राचीन तथा अर्वाचीन अथवा प्राच्य अतएव सारा जगत् राजाको देवताके तथा पाश्चात्य गजसत्ता-सम्बन्धी कल्पना. समान प्रणाम करता है। राजा विष्णुके में जो यह महत्वका भेद है, उस पर अवश्य अंशसे जन्म लेता है । उसे जन्मसे ही ध्यान देना चाहिए। राजकीय सत्ताका दण्डनीतिका शान रहता है" (शान्ति पर्व ' स्थान चाहे गजा रहे या प्रजासत्ताक १०६) । इस प्रकार, महाभारत-कालके राज्यकी कोई लोक-नियुक्त राज-सभा तत्त्ववेत्ताओन, गजाकी सत्ताकी उत्पत्ति- ' रहे, पाश्चात्य तत्त्वज्ञानियोंकी यह मीमांसा के विषयमें विवेचन किया है । ब्रह्माने : है कि सब नियम या कानून उसी केन्द्र- विष्णुके अंशसे राजाकी विभूति इसलिए स्थानस बनते हैं । पाश्चात्य गजनैतिक उत्पन्न की है कि लोगों अधर्मकी प्रवृत्ति : शास्त्रका कथन है कि कानूनमें जो न होने पावे। परन्तु उन्होंने यह सिद्धान्त । कानूनका स्वरूप है, अथवा कानूनका बतलाया है कि राजाके साथ ही साथ जो बन्धन है, वह राजसत्ताकी आज्ञासे ब्रह्माने दण्डनीतिका शास्त्र भी उत्पन्न प्राप्त हुआ है। इस रीतिसं देखा जाय तो किया है। पाश्चात्य देशोंमें राजा या राजकीय नीति-नियमोंसे राजसत्ताका । संस्थाओंका मुख्य कर्त्तव्य यही होता है कि गजा, प्रजाके व्यवहारके लिए, समय नियन्त्रण। समय पर कानून बनावे । राजाके अनेक राजाकी अनियन्त्रित सत्ताको निय- अधिकागेमेसे बड़े महत्त्वका एक अधिकार मित करनेकी व्यवस्था इस तरह की गई यह है कि राजा नये कानून बना सकता थी। अब उस पर कुछ और ध्यान देना है: और स्वेच्छाचार्ग राजागण समय चाहिए । यद्यपि हिन्दुस्थानके प्राचीन समय पर जुल्मसे कानून बनाकर लोगों- राजा लोग अनियन्त्रित राजसत्तावाल का कायदेकी रीतिसं सता सकते हैं। य, तथापि वै एक गनिम सुव्यवस्थित हिन्दुस्थानके भारती आर्योंकी विचार- और नियन्त्रित भी थे। लोगोंकी रक्षाके । पद्धति इससे भिन्न थी। उनकी रायमें लिए जो नियम ब्रह्माने बना दिये थे, उनका कायदोंका उद्गमस्थान राजाकी सत्तामें उल्हान करनका राजाको भी अधिः : नहीं है: इन कायदों या नियमोंके लिए