पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३८२

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३५६
महाभारतमीमांसा

३५६ ॐ महाभारतमीमांसा ® सारथीथा। आकाशसे टकरानेवाली अति के भी रथ दो चक्केवाले ही रहते थे। यह प्रचण्ड ध्वजा उस पर फहराती थी और बात प्रसिद्ध है कि बैबिलोनियन, असी- लाल मस्तकवाला अत्यन्त भयानक गृध्र- रियन, यूनानी,इजिप्शियन आदि पाश्चात्य पक्षी उस ध्वजा पर बैठा था। उसका लोगोंके लड़ाईके रथ दो चक्केवाले ही धनुष्य बारह मुंडे हाथ लम्बा था और · रहते थे। इसी प्रकार भारती लड़ाई के उसका पृष्ठभाग ठीक एक हाथ था ।" इस रथ भी दो चक्केवाले थे। जब मुझे लोक- वर्णनसे साधारण रथकी भी कल्पना की मान्य तिलकका यह मत मालूम हुआ कि जा सकती है। अन्तर केवल यही है कि उक्त अर्जुनके रथमें दो ही चक्के थे, तब मैंने वर्णनमें रथका सब परिमाण राक्षसोंके महाभारतके युद्ध-घर्णनोंको फिरसे ध्यान- लिए बढ़ा दिया गया है। यह बात मालम पूर्वक पढ़ देखा । मेरी राय है कि उन्हीं- नहीं होती कि ध्वजा पर जो चिह्न रहता का मत ठीक है और आजकल अर्जुनके था, वह लकड़ीकी स्वतन्त्र प्राकृतिक रूपमें रथके जो चित्र देख पड़ते हैं वे सब गलत था या ध्वजाकी पताका पर ही खींचा है। कर्ण पर्व के ५३वें अध्यायमें अर्जुन और जाता था। परन्तु ऐसा मालम होता है संशप्तकके युद्ध-वर्णनमें यह श्लोक है- कि दोनों रीतियाँ प्रचलित होगी। यना- ते हयान रथचक्रे च रथेषां चापि मारिष नियोंके किये हुए वर्णनके अनुसार एक निगृहीतुमुपाक्रामन् क्रोधाविष्टाःसमन्ततः१४ सारथीके सिवा कभी कभी रथमें दूसरा : इसमें 'रथचक्रे' कहा गया है । सारथी भी रहता था। उसे पाणि-सारथी संस्कृतमें द्विवचन स्वतन्त्र है, इसलिए कहा है। यह कल्पना होगी कि एकके हिन्दी या मराठीके समान यहाँ सन्देह मरने पर दूसरा उपयोगी हो । ध्वजा नहीं रह सकता। अर्जुनके रथको संश. और पताका दोनों भिन्न भिन्न हो रथसे 'तकोने घेर लिया था. उसमें दो ही चक ध्वजा अलग कर दी जा सकती थी। बताये गये हैं। मालूम होता है कि कर्णके वर्णन है कि उत्तर-गोग्रहणके समय रथमें भी दो ही चक्क थे । द्रोणपर्वक उत्तरकी ध्वजामें सिंह था और उसे अर्जुन- '१६ अध्यायमें यह श्लोक है- ने निकालकर शमी वृक्षके नीचे रख रथचक्रं च कर्णस्य बभंज स महाबलः । दिया था। "ध्वज सिंह (सिंहाकार- एकचक्रं रथं तस्य तमूहुः सुचिरं हयाः टीका।) एकचक्रमिवार्कस्य रथं समयाइव ॥५४ अपनीय महारथः। यहां इस बातका वर्णन है कि एक प्रणिधायशमीमूले प्रायादुत्तर-सारथिः॥” चकके टूट जाने पर भी कर्णके रथको (वि० अ०४६) एक ही चके पर घोड़े बहुत समयतक यह वर्णन भी पाया जाता है कि खींच रहे थे; अस्तु; ऐसा मालूम होता अर्जुनने अपने रथके वानर-चिह्नका ध्यान है कि बड़े बड़े योद्धाओंके रथोंमें दो ही किया और उसे रथ पर लगा दिया। चक्के रहते थे; परन्तु प्रश्न यह है कि ऐसे अमुक वीरके अमुक वज-चिह्नको देख रथों में बहुतसे आयुध और सामान किस कर बड़े योद्धाओंका भय होता होगा। प्रकार रह सकते होंगे और ऐसे रथोको ___ सम्भव है कि साधारण रथ अाज- 'नगराकार' क्यों कहा है ? खैर, लोक- कलकी दो चक्केवाली मामूली गाडीके मान्य तिलककी स्मरणशक्ति यथार्थमें समान हो। परन्तु बड़े बड़े योद्धाओं- प्रशंसनीय है। अनेक वर्णनोंसे यही बात